भारतीय टीवी धारावाहिकों में विवाहेतर संबंधों का बढ़ता प्रभाव

भारतीय टीवी धारावाहिकों में विवाहेतर संबंधों की प्रवृत्ति ने पारिवारिक मूल्यों को प्रभावित किया है। दर्शक, विशेषकर गृहिणियां, अब नई और सार्थक कहानियों की मांग कर रही हैं। क्या ये धारावाहिक दर्शकों की अपेक्षाओं पर खरे उतर पाएंगे? जानें इस लेख में कि कैसे दर्शक इस बदलाव को देख रहे हैं और क्या वे विवाहेतर संबंधों की कहानियों से थक चुके हैं।
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भारतीय टीवी धारावाहिकों में विवाहेतर संबंधों का बढ़ता प्रभाव

परिवारिक मूल्यों का ह्रास

भारतीय धारावाहिकों ने दशकों से पारिवारिक नाटकों और रोमांटिक कहानियों पर आधारित होकर दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित किया है। लेकिन अब पारंपरिक पारिवारिक मूल्यों में कमी आती दिख रही है। रोमांस, विवाह और विश्वासघात जैसे विषय अब एक प्रमुख कथा में बदल चुके हैं। इस बदलाव का मुख्य कारण विवाहेतर संबंध हैं, जो पहले सामाजिक वर्जना माने जाते थे, अब भारतीय टेलीविजन धारावाहिकों की नींव बन गए हैं।


धारावाहिकों का ऐतिहासिक संदर्भ

इस प्रवृत्ति की शुरुआत 1996 में हुई, जब निर्देशक अजय सिन्हा के धारावाहिक हसरतें ने विवाहेतर संबंधों की कहानी को प्रस्तुत किया। इस धारावाहिक ने सावी नाम की नायिका के माध्यम से एक विवाहित पुरुष के साथ उसके संबंधों को दर्शाया। लेकिन आज के निर्देशक इस 'वर्जनाओं को तोड़ने' के विचार को गलत तरीके से समझ रहे हैं।


क्योंकि सास भी कभी बहू थी

2000 के दशक की शुरुआत में क्योंकि सास भी कभी बहू थी और कहानी घर घर की जैसे धारावाहिकों ने पारिवारिक मूल्यों को बढ़ावा दिया। 2009 में प्रसारित मन की आवाज़ प्रतिज्ञा ने एक मजबूत महिला की छवि को प्रस्तुत किया। लेकिन अब भारतीय धारावाहिकों में प्रेम त्रिकोणों का बोलबाला है। अनुपमा और सिलसिला बदलते रिश्तों का जैसे धारावाहिकों ने विवाहेतर संबंधों की कहानियों के साथ दर्शकों के बीच बहस को बढ़ावा दिया।


क्या दर्शक थक गए हैं?

क्या दर्शक, खासकर भारतीय गृहिणियां, इस पुरानी कहानी से थक चुकी हैं? विवाहेतर संबंधों ने निश्चित रूप से भारतीय टीवी नाटक को आकार दिया है, लेकिन नई कहानियों की मांग अब और भी तेज हो गई है। गृहिणियां अब मानसिक स्वास्थ्य, वास्तविक संबंधों और पेशेवर चुनौतियों जैसे विषयों पर कहानियां देखना चाहती हैं।


महिलाओं की प्रतिक्रियाएं

“मैंने अनुपमा देखना बंद कर दिया जब उसके पति वानराज शाह को काव्या के साथ बेडरूम में पकड़ा गया,” ओडिशा की ज्योति सिंह कहती हैं। “क्यों वानराज और काव्या के रिश्ते को परिवार ने बाद में स्वीकार कर लिया, जबकि अनुपमा ने आगे बढ़ चुकी थी?” वहीं, देहरादून की 46 वर्षीय भुमिका कहती हैं, “मैंने हाले दिल देखना शुरू किया क्योंकि मुझे मनीषा रानी पसंद हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि भारतीय टीवी अब खुशहाल विवाह दिखाना नहीं जानता।”


महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता

“हम ऐसी कहानियां देखना चाहते हैं जहां महिलाएं व्यवसाय चला रही हों, न कि किसी पुरुष के लिए रो रही हों,” अयोध्या की एक सेवानिवृत्त शिक्षिका कहती हैं। “पहले विवाहेतर संबंधों को गलत माना जाता था, अब तो जो धोखा खा रहा है, वह आसानी से माफ कर देता है।”


कहानी का मनोरंजन मूल्य

हालांकि, सभी दर्शक विवाहेतर संबंधों के खिलाफ नहीं हैं। पुणे की एक गृहिणी कहती हैं, “धारावाहिकों का मतलब ही ड्रामा है, लोगों को व्यस्त रखने के लिए ऐसी कहानियां दिखाई जाती हैं।” विवाहेतर संबंधों ने लंबे समय से भारतीय टीवी धारावाहिकों की नींव रखी है। अब समय आ गया है कि महिला सशक्तिकरण और जटिल मानव कहानियों को केंद्र में लाया जाए।