Madan Mohan: एक अद्वितीय संगीतकार की विरासत
मदन मोहन का संगीत सफर
यह एक मिथक है कि मदन मोहन केवल ग़ज़लें ही रच सकते थे। उनके प्रेम गीत, भजन और देशभक्ति के गाने भी समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं। मदन मोहन अब केवल 1950 के दशक में फिल्म उद्योग में आए कई प्रतिभाशाली संगीतकारों में से एक नहीं रहे, बल्कि उनकी स्थिति विशेष है, जो हर साल और भी खास होती जा रही है।
उन्होंने जिन गानों की रचना की, जैसे कि तलत महमूद का 'फिर वही शाम', मोहम्मद रफी का 'तुम जो मिल गए हो', मन्ना डे का 'कौन आया मेरे मन के द्वारे' और आशा भोसले का 'झुमका गिरा रे', वे सभी बेहद खास थे।
मदन मोहन की रचनाएँ सहजता से बनती थीं। लता मंगेशकर के अमर गानों 'आपकी नज़रों ने समझा' और 'लग जा गले' के लिए धुनें लगभग एक झटके में तैयार हो गईं। और फिर, एक और मदन मोहन की धुन का जन्म हुआ।
लता मंगेशकर के साथ विशेष संबंध
मदन मोहन की रचनाएँ इतनी खास थीं कि गायक उनके गाने गाने के लिए एक-दूसरे पर गिरते थे। लेकिन उनकी पसंदीदा गायिका लता मंगेशकर थीं। उन्होंने कहा, "शायद उन्हें लगा कि मैं उनकी रचनाओं को वह दे सकती हूं, जो उन्हें चाहिए।" यह केवल उनके गाने में विश्वास नहीं था, बल्कि मदन मोहन ने लता को अपनी मुख्य आवाज चुना क्योंकि उन्हें पता था कि केवल वही उनकी धुनों को उस ऊँचाई तक पहुंचा सकती हैं।
यदि आप मदन मोहन का गाना 'मैं री मैं कैसे कहूँ पीर' सुनते हैं और फिर लता जी का संस्करण सुनते हैं, तो आप समझ सकते हैं कि लता जी ने मदन मोहन की रचनाओं में क्या हासिल किया। लता जी ने वास्तव में संगीतकार की धुनों को जादुई रूप में बदल दिया।
संगीत की दुनिया में मदन मोहन का योगदान
मदन मोहन और लता मंगेशकर का सहयोग मुंबई के अन्य गायकों के लिए निराशा का कारण बन गया। मन्ना डे ने एक बार कहा था कि मदन मोहन एक बहुत अच्छे संगीतकार थे, लेकिन उन्होंने कभी भी किसी और आवाज़ की परवाह नहीं की। आशा भोसले ने कभी भी अपनी नाराजगी को नहीं भुलाया। एक बार उन्होंने संगीतकार से पूछा कि उन्हें उनके गाने गाने का मौका क्यों नहीं दिया गया। मदन मोहन ने उत्तर दिया, "जब तक लता हैं, तब तक और कोई नहीं।"
मदन मोहन और लता मंगेशकर का संबंध केवल संगीत तक सीमित नहीं था। उनके सहयोग की गहराई और महिमा सामान्य व्याख्या से परे है। मुझे बताया गया है कि उनके लिए कई गाने रचे गए थे, जो या तो रिकॉर्ड नहीं हुए या रिलीज नहीं हुए।
मदन मोहन की विरासत
मदन मोहन ने अपने 25 साल के करियर में कभी भी एक भी साधारण गाना नहीं बनाया। हर एक धुन, गाना, और वाद्ययंत्र को बेहतरीन होना चाहिए था। फिल्म 'जहाँ आरा' में हमें लगातार शानदार रचनाएँ देखने को मिलती हैं।
लता जी के भाई, हृदयनाथ मंगेशकर, मदन मोहन की रचनाओं से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने फिल्म के एल्बम की एक प्रति पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा। दुख की बात यह है कि मदन मोहन की महानता को उनके निधन के बाद ही पहचाना गया। जब वह 14 जुलाई 1975 को निधन हुए, तब उनके गाने 'लैला मजनू' चार्ट में शीर्ष पर पहुंच गए।
