रूस पर प्रतिबंधों के बाद सोने की खरीदारी में तेजी, डॉलर का प्रभुत्व घटता
सोने की खरीदारी में वृद्धि का कारण
नई दिल्ली। हाल ही में अमेरिका ने रूस की सरकारी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे भारत और चीन जैसे देशों के लिए चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं। इस स्थिति के कारण वैश्विक बाजार में तेल की कीमतें 5 प्रतिशत तक बढ़ गई हैं। वैश्विक भू-राजनीतिक स्थिति पहले से ही अस्थिर है, और ट्रंप की टैरिफ नीति ने आर्थिक असुरक्षा को बढ़ावा दिया है।
रूस-यूक्रेन संघर्ष के चलते रूस के विदेशी मुद्रा भंडार को फ्रीज करने और अन्य प्रतिबंधों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि डॉलर को एक रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस संदर्भ में, चीन, रूस और भारत जैसे देश अपने सोने के भंडार को बढ़ा रहे हैं। पिछले छह महीनों में सोने की कीमतों में 65 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। आइए जानते हैं कि केंद्रीय बैंक सोने की खरीदारी क्यों कर रहे हैं और यह डॉलर के प्रभुत्व को कैसे प्रभावित कर रहा है।
जोखिम की चिंता का अभाव
दुनिया के विभिन्न देशों द्वारा अपने सोने के भंडार को बढ़ाने का मुख्य कारण वैश्विक अस्थिरता है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि दर 2 प्रतिशत से नीचे है, जबकि मुद्रास्फीति स्थिर बनी हुई है। इस स्थिति में, पारंपरिक सुरक्षित परिसंपत्तियों जैसे सावरेन बांड से मिलने वाला रिटर्न अब भरोसेमंद नहीं रह गया है। जब केंद्रीय बैंकों का डॉलर जैसी मुद्राओं पर विश्वास कम होता है, तो वे ठोस संपत्तियों की तलाश में निकलते हैं। सोने के साथ कोई जोखिम नहीं जुड़ा होता है। इसे कभी भी बेचा जा सकता है, यह कभी डिफॉल्ट नहीं कर सकता और न ही इसे प्रतिबंधित किया जा सकता है।
सोने की खरीदारी की रणनीति
केंद्रीय बैंकों द्वारा गोल्ड रिजर्व में वृद्धि का मुख्य कारण जोखिम के खिलाफ खुद को मजबूत करना है। यह कदम डी डालराइजेशन से प्रेरित है, जिसका अर्थ है डॉलर पर निर्भरता को कम करना। चीन, भारत, रूस, तुर्की और मध्य पूर्व के कई देश इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। गोल्ड रिजर्व बढ़ाने से प्रतिबंधों से सुरक्षा मिलती है, मौद्रिक विश्वसनीयता मजबूत होती है और वित्तीय स्थिरता बढ़ती है। इसके अलावा, यह तेजी से बहुध्रुवीय वित्तीय व्यवस्था में स्वतंत्र मौद्रिक नीति के लिए लचीलापन भी प्रदान करता है।
केंद्रीय बैंकों की खरीदारी
कई देशों के केंद्रीय बैंक 2025 में लगभग 900 टन सोना खरीदने की योजना बना रहे हैं। यह लगातार चौथा वर्ष होगा जब औसत से अधिक खरीदारी की जाएगी। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के केंद्रीय बैंक स्वर्ण भंडार सर्वेक्षण के अनुसार, 76 प्रतिशत केंद्रीय बैंकों को उम्मीद है कि अगले पांच वर्षों में उनके पास सोने का अनुपात बढ़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इस खरीदारी ने, उच्च वैश्विक ब्याज दरों के बावजूद, सोने की कीमतों के लिए एक मजबूत आधार तैयार किया है। केंद्रीय बैंकों की खरीदारी सोने को एक विश्वसनीय दीर्घकालिक संपत्ति के रूप में स्थापित कर रही है, जिससे संस्थागत और खुदरा निवेशक दोनों ही ईटीएफ, खनन इक्विटी और सावरेन गोल्ड बांड के माध्यम से निवेश बढ़ा रहे हैं।
डॉलर का घटता प्रभुत्व
आइएमएफ के कोफर डाटाबेस के अनुसार, अमेरिकी डॉलर अभी भी कुल वैश्विक भंडार का लगभग 58 प्रतिशत हिस्सा है, लेकिन यह हिस्सा लगातार घट रहा है। डॉलर के प्रभुत्व को आर्थिक और राजनीतिक कारकों से चुनौती मिल रही है। रूस पर हाल में लगाए गए वित्तीय प्रतिबंधों ने कई सरकारों को अमेरिकी संपत्ति रखने को लेकर चिंतित कर दिया है। इसके विपरीत, सोना इस प्रणाली से बाहर है। इसे घरेलू स्तर पर बड़े पैमाने पर रखा जा सकता है और वैश्विक स्तर पर कारोबार किया जा सकता है, और यह किसी एक देश की नीतियों से बंधा नहीं है।
चीन की आक्रामक खरीदारी
चीन इस बदलाव का सबसे बड़ा उदाहरण है। पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना हाल के वर्षों में सोने के सबसे आक्रामक खरीदारों में से एक रहा है, जिसने 2025 के मध्य तक लगातार 18 महीनों तक अपने भंडार में वृद्धि की है। अर्थशास्त्री चीन की सोने की खरीद को संभावित अमेरिकी प्रतिबंधों से बचाव और ब्रिक्स+ समूह के भीतर गैर-डॉलर व्यापार को समर्थन देने की एक व्यापक रणनीति का हिस्सा मानते हैं। चीन की इस आक्रामकता का दूरगामी प्रभाव देखने को मिलेगा।
