रिलायंस की शिकायत पर चीन के रबर आयात की जांच शुरू

रिलायंस सिबुर इलास्टोमर्स ने चीन से रबर आयात पर गंभीर आरोप लगाए हैं, जिसके बाद सरकार ने जांच शुरू कर दी है। यह मामला भारतीय रबर उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि डंपिंग से स्थानीय कंपनियों को नुकसान हो सकता है। जानें इस मुद्दे की पूरी जानकारी और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
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रिलायंस की शिकायत पर चीन के रबर आयात की जांच शुरू

चीन के खिलाफ रिलायंस सिबुर इलास्टोमर्स की शिकायत

रिलायंस की शिकायत पर चीन के रबर आयात की जांच शुरू

भारतीय बाजार में चीनी उत्पादों की डंपिंग का मुद्दा फिर से चर्चा में है। डंपिंग का अर्थ है जब कोई देश अपने निर्मित सामान को दूसरे देश में लागत से भी कम कीमत पर बेचता है, जिससे वहां के स्थानीय उद्योग को नुकसान होता है। इस बार यह मामला रबर उद्योग से संबंधित है और शिकायतकर्ता मुकेश अंबानी की कंपनी है।

सरकार ने इस गंभीर शिकायत पर त्वरित कार्रवाई की है। वाणिज्य मंत्रालय की एक महत्वपूर्ण इकाई, व्यापार उपचार महानिदेशालय (DGTR), ने इस मामले की आधिकारिक जांच आरंभ कर दी है। यह जांच चीन से आयात होने वाले विशेष प्रकार के रबर पर केंद्रित है.


जांच की आवश्यकता क्यों पड़ी?

यह जांच एक स्थानीय निर्माता की याचिका पर शुरू की गई है। डीजीटीआर द्वारा जारी सर्कुलर के अनुसार, आवेदक कंपनी रिलायंस सिबुर इलास्टोमर्स है, जो रिलायंस इंडस्ट्रीज और सिबुर का एक संयुक्त उद्यम है। मुकेश अंबानी इस कंपनी के चेयरमैन हैं.

रिलायंस सिबुर इलास्टोमर्स ने अपनी शिकायत में चीन से आयात होने वाले 'हेलो आइसोब्यूटेन' और 'आइसोप्रीन रबर' पर गंभीर आरोप लगाए हैं। कंपनी का कहना है कि चीन इन उत्पादों को भारत में अत्यधिक कम कीमत पर बेच रहा है, जिससे भारतीय रबर उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इस कारण, आवेदक कंपनी ने सरकार से अनुरोध किया है कि चीन से होने वाले इस आयात पर तुरंत डंपिंग रोधी शुल्क लगाया जाए, ताकि बाजार में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित की जा सके.


इस रबर का हमारे जीवन पर प्रभाव

जिस रबर के लिए यह कदम उठाया गया है, वह कोई साधारण रबर नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार, इस चीनी रबर का मुख्य उपयोग मोटर वाहन उद्योग में होता है। इसका मतलब है कि यह आपकी कार, मोटरसाइकिल, बस और ट्रक के टायरों सहित कई महत्वपूर्ण पुर्जों में इस्तेमाल होता है.

जब स्थानीय उद्योग इस रबर का उत्पादन करते हैं, तो वे इसे एक निश्चित गुणवत्ता और मूल्य पर बेचते हैं। लेकिन यदि विदेशी सामान बहुत सस्ता आने लगे, तो भारतीय कंपनियों का माल कौन खरीदेगा? इससे घरेलू फैक्ट्रियों का उत्पादन ठप हो सकता है, मुनाफा खत्म हो सकता है और सबसे बुरी बात, वहां काम करने वाले लोगों की नौकरियों पर संकट आ सकता है. इसलिए, यह मामला केवल दो कंपनियों के बीच का नहीं है, बल्कि यह पूरे ऑटोमोबाइल सेक्टर की सप्लाई चेन और उससे जुड़े रोजगार को प्रभावित कर सकता है.


शुल्क पर अंतिम निर्णय कौन लेगा?

डीजीटीआर ने जांच शुरू कर दी है, लेकिन इसकी एक निश्चित प्रक्रिया है। सबसे पहले, डीजीटीआर यह जांच करेगा कि क्या रिलायंस सिबुर इलास्टोमर्स के आरोप सही हैं। जांच में यह पता लगाया जाएगा कि क्या चीन वास्तव में डंपिंग कर रहा है? और यदि हां, तो क्या इस डंपिंग के कारण भारतीय घरेलू उत्पादक को वास्तविक क्षति हुई है?

यदि जांच में ये दोनों बातें साबित होती हैं, तो डीजीटीआर शुल्क लगाने की सिफारिश करेगा। यह समझना आवश्यक है कि डीजीटीआर खुद शुल्क नहीं लगाता है। सर्कुलर में स्पष्ट कहा गया है कि शुल्क लगाने का अंतिम निर्णय वित्त मंत्रालय लेता है.