मध्यप्रदेश सरकार का बढ़ता कर्ज: 125 करोड़ रुपये प्रतिदिन का औसत
मध्यप्रदेश सरकार का कर्ज और वित्तीय स्थिति

प्रदेश सरकार ने चालू वित्त वर्ष में 49 हजार करोड़ रुपये का कर्ज लिया
डॉ. मोहन यादव की सरकार के दो साल पूरे होने पर विभागीय मंत्री अपनी उपलब्धियों का बखान कर रहे हैं। इस क्रम में वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने वित्त विभाग की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए बताया कि सरकार हर महीने हजारों करोड़ रुपये का कर्ज ले रही है।
वित्त विभाग के आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में मध्यप्रदेश पर कुल कर्ज 4.65 लाख करोड़ रुपये है, जो वित्त वर्ष 2025-26 के कुल बजट 4.21 लाख करोड़ रुपये से 34 हजार करोड़ रुपये अधिक है। इस वित्त वर्ष में सरकार ने लगभग 49 हजार 600 करोड़ रुपये का कर्ज लिया है, जिसका मतलब है कि सरकार को रोजाना औसतन 125 करोड़ रुपये का कर्ज लेना पड़ रहा है।
वित्त विभाग का कहना है कि यह कर्ज पूंजीगत व्यय के लिए लिया जाता है, जो राज्य की प्रगति के लिए आवश्यक है। हर बार कर्ज लेने से पहले सरकार अधिसूचना जारी करती है कि यह कर्ज पूंजीगत व्यय के लिए है। हालांकि, वित्त विभाग ने अभी तक अपनी संपत्तियों का मूल्य सार्वजनिक नहीं किया है। आमतौर पर माना जाता है कि सरकारी संपत्तियों का मूल्य राज्य की बकाया देनदारियों से कई गुना अधिक होता है, इसलिए मध्यप्रदेश सरकार को कर्ज लेने में कोई समस्या नहीं है।
17 दिसंबर को मध्यप्रदेश विधानसभा के 70 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आयोजित विशेष सत्र में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि सरकार ने पिछले दो वर्षों में 14-15 प्रतिशत की विकास दर हासिल की है। मुख्यमंत्री ने बढ़ते कर्ज के बारे में कहा कि इसका बड़ा हिस्सा पूर्व सरकारों द्वारा लिया गया था।
लाड़ली बहना योजना का वित्तीय बोझ
वर्तमान में मध्यप्रदेश सरकार की सबसे बड़ी वित्तीय भार वाली योजना लाड़ली बहना योजना है। सरकार ने इस योजना के तहत मासिक भुगतान को 1250 रुपये से बढ़ाकर 1500 रुपये कर दिया है। पहले इस योजना के लिए मासिक भुगतान में 1540 करोड़ रुपये से अधिक की आवश्यकता थी, जो अब बढ़कर लगभग 1850 करोड़ रुपये हो गई है। सरकार ने 2028 तक इस योजना के तहत मासिक भुगतान को 3000 रुपये तक ले जाने का वादा किया है। मुख्यमंत्री ने लाड़ली बहनों को 5000 रुपये प्रति माह देने की इच्छा भी जताई है, लेकिन इसके लिए कोई समय-सीमा नहीं दी गई है।
कर्ज लेकर हो रहा निवेश
वित्त विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि सभी प्रकार के कर्ज राज्य के विकास और भविष्य के लिए लाभकारी संपत्तियों के निर्माण के लिए लिए गए हैं। इनमें बांध, नहरें, भवन, कुएं, तालाब और सड़कों का निर्माण शामिल है। इसके अलावा तकनीक, संचार, यातायात, सहकारी बैंक और अन्य सहकारी संस्थाओं में भी निवेश किया जा रहा है।
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा लगातार बढ़ते कर्ज को ‘उपलब्धि’ और ‘निवेश’ के रूप में प्रस्तुत करना कई सवाल उठाता है। यह सच है कि पूंजीगत व्यय के लिए लिया गया कर्ज भविष्य की संपत्तियां खड़ी करता है, लेकिन जब कुल कर्ज राज्य के कुल बजट से भी अधिक हो जाए, तो वित्तीय अनुशासन को लेकर चिंता स्वाभाविक है। रोजाना औसतन 125 करोड़ रुपये का कर्ज लेना इस बात का संकेत है कि राजस्व और व्यय के बीच संतुलन कमजोर है। लाड़ली बहना जैसी योजनाएं सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उनके दीर्घकालिक वित्तीय बोझ का स्पष्ट रोडमैप नहीं है। सरकार की संपत्तियों का मूल्य सार्वजनिक न करना भी पारदर्शिता की कमी को दर्शाता है। कर्ज विकास का साधन हो सकता है, लेकिन असीमित कर्ज भविष्य की पीढ़ियों पर भारी बोझ बन सकता है।
विशेषज्ञों की राय
शेयर पूंजी में निवेश, तीसरे पक्ष की संस्थाओं को कर्ज देना, जो किस्तों में ब्याज सहित राशि लौटाएंगी, और मध्यप्रदेश के ऊर्जा विभाग की बिजली उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण कंपनियों को कर्ज देने के लिए यह ऋण लिया गया है। यह एक प्रकार का निवेश है।
प्रदेश के विकास के लिए यह आवश्यक है। विकसित देशों में भी कर्ज लिया जाता है। कर्ज की राशि यूं ही खर्च नहीं की जा रही है। मध्यप्रदेश में सरकार की स्थायी संपत्तियां खड़ी हो रही हैं। मौजूदा विकास कार्यों को निरंतर जारी रखने के लिए कर्ज लेना आवश्यक है। यदि कर्ज लेना बंद कर दिया गया, तो विकास कार्य रुक जाएंगे।
– मनीष रस्तोगी, अपर मुख्य सचिव, वित्त विभाग
यह कर्ज नहीं, निवेश है। हम राज्य के पूंजीगत विकास के लिए भविष्य में और कर्ज लेंगे। आप इसे दूसरे नजरिए से देखते हैं, लेकिन यह हमारे लिए गर्व का विषय है। मध्यप्रदेश सरकार हर कर्ज का ब्याज समय पर चुका रही है।
– जगदीश देवड़ा, वित्त मंत्री, मध्यप्रदेश शासन
