भारतीय रुपये पर डॉलर का दबाव: जानें कारण और प्रभाव

गुरुवार को भारतीय रुपये ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले फिर से दबाव का सामना किया। डॉलर की बढ़ती ताकत और विदेशी निवेशकों की बिकवाली ने रुपये को कमजोर किया है। जानें इसके पीछे के कारण और भारतीय शेयर बाजार की स्थिति के बारे में। क्या भारत और अमेरिका के बीच व्यापार सौदे की बातचीत रुपये को सहारा दे पाएगी? इस लेख में इन सभी सवालों के जवाब दिए गए हैं।
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भारतीय रुपये पर डॉलर का दबाव: जानें कारण और प्रभाव

डॉलर की ताकत और रुपये की कमजोरी

भारतीय रुपये पर डॉलर का दबाव: जानें कारण और प्रभाव

डॉलर ने दिखा दी असली ताकत

भारतीय रुपये बनाम डॉलर: गुरुवार को भारतीय रुपये ने फिर से दबाव का सामना किया। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी का सिलसिला जारी है। इंटरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपये की शुरुआत 88.62 पर हुई, लेकिन बिकवाली के दबाव के चलते यह 7 पैसे गिरकर 88.69 पर पहुंच गया। यह जानना जरूरी है कि आखिर हमारी मुद्रा पर यह दबाव क्यों है?

डॉलर की बढ़ती ताकत

विश्लेषकों के अनुसार, रुपये की हालिया गिरावट के पीछे दो मुख्य कारण हैं। पहला, अमेरिकी डॉलर की वैश्विक ताकत में निरंतर वृद्धि। दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला ‘डॉलर इंडेक्स’ 0.02% बढ़कर 99.51 के उच्च स्तर पर पहुंच गया है।

जब डॉलर इंडेक्स में वृद्धि होती है, तो इसका अर्थ है कि निवेशक अन्य मुद्राओं की तुलना में अमेरिकी डॉलर को सुरक्षित मानते हैं और उसमें निवेश बढ़ाते हैं। डॉलर की यह मजबूती न केवल रुपये पर, बल्कि एशिया की कई अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं पर भी दबाव डाल रही है।

दूसरा महत्वपूर्ण कारण घरेलू शेयर बाजारों में सुस्ती है। गुरुवार को बाजार की शुरुआत कमजोरी के साथ हुई। बीएसई सेंसेक्स 205.08 अंक गिरकर 84,261.43 पर आ गया, जबकि एनएसई निफ्टी-50 भी 61.15 अंक गिरकर 25,814.65 पर कारोबार कर रहा था। हालांकि, बाद में कुछ सुधार देखने को मिला।

रुपये पर संकट के कारण

रुपये पर दबाव का एक बड़ा कारण विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) की निरंतर बिकवाली है। विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से अपना पैसा निकाल रहे हैं। हाल के आंकड़ों के अनुसार, बुधवार को FIIs ने 1,750.03 करोड़ रुपये के शेयर बेचे।

इसे सरल भाषा में समझें, जब विदेशी निवेशक भारत में निवेश करते हैं, तो वे डॉलर लाकर उसे रुपये में बदलते हैं, जिससे रुपये की ताकत बढ़ती है। लेकिन जब वे मुनाफा निकालते हैं या बाजार से बाहर निकलते हैं, तो वे रुपये को डॉलर में बदलते हैं, जिससे रुपये की कीमत गिर जाती है। यह बिकवाली का सिलसिला रुपये को कमजोर कर रहा है।

ट्रेड डील का महत्व

इस दबाव के बीच दो छोटी लेकिन महत्वपूर्ण बातें हैं जो रुपये को और गिरने से रोक रही हैं। पहली, भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार सौदे की बातचीत। यदि यह बातचीत सकारात्मक परिणाम देती है, तो इससे देश के निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है और भविष्य में डॉलर का प्रवाह बढ़ सकता है। इसी उम्मीद ने रुपये को कुछ मनोवैज्ञानिक सहारा दिया है।

दूसरी राहत की खबर कच्चे तेल की कीमतों से है। ब्रेंट क्रूड की कीमतें 0.13% गिरकर 62.63 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई हैं। भारत अपनी जरूरत का अधिकांश तेल आयात करता है, जिसका भुगतान डॉलर में करना होता है। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का मतलब है कि हमारे डॉलर के खर्च में कमी आएगी, जो रुपये के लिए एक सकारात्मक संकेत है.