भारतीय कंपनियों की नई रणनीतियाँ: ट्रंप के H-1B वीजा शुल्क का सामना

डोनाल्ड ट्रंप का नया वीजा शुल्क

डोनाल्ड ट्रंप
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा के लिए नए आवेदन की फीस को बढ़ाकर 1 लाख डॉलर (लगभग 88 लाख रुपये) कर दिया है। इस निर्णय का भारतीय कुशल कार्यबल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है, क्योंकि बड़ी संख्या में भारतीय अमेरिका में नौकरी के लिए जाते हैं। हालांकि, इस शुल्क से बचने के लिए भारतीय कंपनियाँ नई योजनाएँ बना रही हैं। वे अपनी अमेरिकी स्टाफिंग रणनीतियों में बदलाव कर रही हैं और लागत प्रबंधन के लिए एल1 इंट्रा-कंपनी ट्रांसफर, बी1 बिजनेस वीजा, और अन्य विकल्पों पर विचार कर रही हैं।
भारतीय कंपनियाँ H-1B वीजा की बढ़ी हुई फीस से बचने के लिए नई रणनीतियाँ विकसित कर रही हैं। ट्रंप प्रशासन द्वारा H-1B वीजा पर $100,000 की एकमुश्त फीस लागू करने के बाद, कंपनियाँ वैकल्पिक उपायों पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कंपनियाँ अब L-1 वीजा (इंट्रा-कंपनी ट्रांसफर), B-1 वीजा (बैठकें और कॉन्फ्रेंस) और यूरोप या भारत में कार्य को ऑफशोर करने जैसे विकल्पों पर विचार कर रही हैं.
H-1B वीजा शुल्क में वृद्धि
19 सितंबर को ट्रंप प्रशासन ने घोषणा की कि H-1B वीजा के लिए अमेरिकी कंपनियों को $100,000 की फीस चुकानी होगी, जो 21 सितंबर से प्रभावी हो गई। हालांकि, अगले दिन यूएस सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज ने स्पष्ट किया कि यह शुल्क केवल नई वीजा याचिकाओं पर लागू होगा, पहले से जारी वीजा पर नए नियम लागू नहीं होंगे.
हायरिंग प्रक्रिया में बदलाव
इमिग्रेशन विशेषज्ञों का मानना है कि H-1B याचिकाओं में अचानक वृद्धि से अगले वित्तीय वर्ष में कंपनियों की प्रतिभा और आउटसोर्सिंग योजनाओं में महत्वपूर्ण बदलाव आ सकता है। डेविस एंड असोसिएट्स की कंट्री हेड सुकन्या रमन ने कहा कि कंपनियाँ अब L-1 और बिजनेस वीजा जैसे विकल्पों पर विचार कर रही हैं, खासकर छोटी अवधि की यात्राओं के लिए। इसके साथ ही, वे उन कर्मचारियों को, जो अमेरिका में वीजा अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं, यूरोप जैसे देशों में स्थानांतरित करने की योजना बना रही हैं, जहाँ वीजा नियम अधिक अनुकूल हैं.
कर्मचारियों की मांग
विशेषज्ञों के अनुसार, ऑफशोर कंपनियाँ अब उन प्रतिभाओं की पहचान कर रही हैं, जो अगले साल अक्टूबर तक L-1 वीजा के लिए योग्य हो सकती हैं। L-1 वीजा के लिए कर्मचारी को विदेशी इकाई में कम से कम एक साल का अनुभव होना आवश्यक है, चाहे वह L-1A हो या L-1B। ईटी की रिपोर्ट में ग्लोबल नॉर्थ के संस्थापक और सीईओ राजनीश पाठक ने बताया कि कंपनियाँ वर्षों से H-1B के साथ-साथ L-1 वीजा का उपयोग वर्क परमिट के लिए करती रही हैं। अब इस नई फीस के कारण L-1 और अन्य विकल्पों पर उनका ध्यान और बढ़ गया है.