भारत की अर्थव्यवस्था: वैश्विक मंदी के बीच मजबूती की ओर
भारत की आर्थिक स्थिति पर नई रिपोर्ट
दुनिया में मंदी की आहट लेकिन भारत की रफ़्तार चौंका देगी!
जबकि वैश्विक स्तर पर आर्थिक मंदी का खतरा मंडरा रहा है, भारत की अर्थव्यवस्था न केवल स्थिर है, बल्कि आगे बढ़ने के लिए तैयार है। हाल ही में जारी CareEdge की रिपोर्ट ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत दिए हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2026 में भारत की विकास दर 7.5% रहने की उम्मीद है, जो वैश्विक औसत से कहीं अधिक है। अमेरिका, ब्रिटेन और यूरो क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाएं अपने ऐतिहासिक औसत से नीचे चल रही हैं, जबकि चीन का विकास भी धीमा हो रहा है। ऐसे में भारत का यह प्रदर्शन एक अद्भुत उपलब्धि है।
भारत की तेजी का कारण
आखिर क्यों पूरी दुनिया से आगे निकल रहा है भारत?
रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि वैश्विक चुनौतियों और व्यापारिक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत अपनी गति बनाए रखेगा। इसका मुख्य कारण घरेलू मांग और निवेश में वृद्धि है। दूसरी तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन सेक्टर में शानदार प्रदर्शन देखने को मिला है। जीएसटी में कटौती और बाजार में बढ़ती मांग ने इस वृद्धि को और भी बढ़ावा दिया है।
वैश्विक स्तर पर अगले पांच वर्षों में औसत विकास दर केवल 3.1% रहने का अनुमान है, जबकि भारत अगले दो वित्तीय वर्षों में क्रमशः 7.5% और 7% की दर से बढ़ने के लिए तैयार है। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव कितनी मजबूत हो चुकी है।
महंगाई पर असर
आपकी जेब पर क्या होगा असर?
आम आदमी के लिए सबसे अच्छी खबर महंगाई के मोर्चे पर है। रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2026 में खुदरा महंगाई (CPI) घटकर औसतन 2.1% रह सकती है। खाद्य वस्तुओं की कीमतों में स्थिरता और कमोडिटी की कीमतों में कमी से यह संभव होगा। इसके अलावा, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने 2025 के अंत में ब्याज दरों में कटौती की है, जिससे होम लोन और ईएमआई का बोझ कम होने की उम्मीद है।
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने विकास को बढ़ावा देने वाला रुख अपनाया है। जुलाई-सितंबर तिमाही में 8.2% की जीडीपी ग्रोथ और अक्टूबर में महंगाई के 0.25% के ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंचने से केंद्रीय बैंक को यह भरोसा मिला है।
रुपये की स्थिति
डॉलर के मुकाबले कहां खड़े हैं हम?
हालांकि, कुछ चुनौतियां भी हैं। पिछले कुछ महीनों में व्यापार घाटा बढ़ने और निवेश में कमी के कारण रुपये पर दबाव देखा गया है। अमेरिका-भारत व्यापार समझौते में देरी ने भी बाजार की धारणा को प्रभावित किया है। लेकिन आरबीआई ने समझदारी से काम लेते हुए विदेशी मुद्रा बाजार में बहुत अधिक हस्तक्षेप करने के बजाय रुपये को धीरे-धीरे समायोजित होने दिया है।
रिपोर्ट के अनुसार, वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (REER) के आधार पर रुपया अभी भी अपनी असली कीमत से लगभग 3% नीचे है। इसका मतलब है कि इसमें बहुत बड़ी गिरावट का खतरा नहीं है। उम्मीद है कि अमेरिका में ब्याज दरें घटने और डॉलर के कमजोर होने से रुपये को सहारा मिलेगा। इसके साथ ही, ब्लूमबर्ग ग्लोबल एग्रीगेट इंडेक्स में भारत के शामिल होने से विदेशी निवेश बढ़ने की संभावना है.
