चेक बाउंस: जानें इसके नियम और सजा से बचने के तरीके

चेक बाउंस एक गंभीर वित्तीय अपराध है, जिसके लिए कानूनी सजा का प्रावधान है। इस लेख में हम चेक बाउंस के नियम, सजा और मुआवजे के प्रावधानों पर चर्चा करेंगे। जानें कि चेक बाउंस होने पर क्या करें और जेल जाने से कैसे बचें। इसके अलावा, चेक जारी करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
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चेक बाउंस: जानें इसके नियम और सजा से बचने के तरीके

चेक बाउंस क्या है?


जब किसी चेक का भुगतान नहीं हो पाता है, तो इसे चेक बाउंस कहा जाता है, जो एक वित्तीय अपराध माना जाता है। यदि इस मामले में कोई सहमति नहीं बनती है, तो आरोपी को सजा का सामना करना पड़ सकता है।


चेक बाउंस के मामलों में कई नियम लागू होते हैं। इस लेख में हम चेक बाउंस के मामलों में सजा और उससे बचने के उपायों पर चर्चा करेंगे।


चेक बाउंस की स्थिति

चेक बाउंस होने के कई कारण हो सकते हैं। आमतौर पर, जब कोई व्यक्ति चेक जारी करता है और उसके खाते में पर्याप्त धनराशि नहीं होती है, तो बैंक चेक को अस्वीकृत कर देता है। इसे चेक बाउंस कहा जाता है। इस स्थिति में न केवल बैंक का समय बर्बाद होता है, बल्कि भुगतान प्राप्त करने वाले व्यक्ति को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। कभी-कभी, हस्ताक्षर मेल न खाने के कारण भी चेक अस्वीकृत हो जाता है।


चेक जारी करते समय सावधानियाँ

कई बार लोग चेक जारी करते समय यह ध्यान नहीं रखते कि उनके खाते में पर्याप्त धनराशि है या नहीं। यदि चेक जारी करने के समय खाते में धनराशि कम हो जाती है, तो यह भी चेक बाउंस के अंतर्गत आएगा। इसलिए, चेक जारी करते समय अपने खाते की स्थिति का ध्यान रखना आवश्यक है।


चेक बाउंस के मामले में कानूनी प्रावधान

चेक बाउंस एक वित्तीय अपराध है और इसके लिए कानूनी सजा का प्रावधान है। यह मामला निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत दर्ज होता है। इसमें जुर्माना या जेल की सजा हो सकती है। अदालतें पहले राजीनामे का प्रयास करती हैं, लेकिन यदि मामला हल नहीं होता है, तो सजा दी जाती है।


मुआवजे का प्रावधान

चेक बाउंस के मामले में अधिकतम दो साल की सजा हो सकती है, लेकिन आमतौर पर अदालतें छह महीने से एक साल की सजा देती हैं। आरोपी को पीड़ित को मुआवजा देने का आदेश भी दिया जा सकता है, जो चेक की राशि से दोगुना हो सकता है।


जेल जाने से बचने के उपाय

चेक बाउंस एक जमानती अपराध है, जिसमें अधिकतम सजा दो साल है। आरोपी को अंतिम फैसले तक जेल नहीं जाना पड़ता है। यदि आरोपी को जेल होती है, तो वह सजा को निलंबित करने के लिए आवेदन कर सकता है।


अंतरिम मुआवजे के प्रावधान

निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 139 के तहत चेक बाउंस के मामलों में अंतरिम मुआवजे का प्रावधान है। आरोपी को पहली पेशी पर शिकायतकर्ता को चेक की राशि का 20 प्रतिशत देना होता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया में बदलाव किया है, जिससे अपील के समय अंतरिम मुआवजा दिया जा सकता है।