अमेरिका का प्रस्तावित टैक्स: भारत को अरबों डॉलर का संभावित नुकसान

अमेरिकी टैक्स प्रस्ताव का प्रभाव
अमेरिका में ग्रीन कार्ड धारकों और एच-1बी वीज़ा धारकों सहित विदेशी श्रमिकों द्वारा अपने देश में भेजे जाने वाले धन पर 3.5% टैक्स लगाने का प्रस्ताव है।
भारत का स्थान
भारत उन देशों में से एक है जो विदेश से बड़ी मात्रा में धन प्राप्त करते हैं। अन्य प्रमुख देशों में मेक्सिको, चीन, फ़िलीपींस, फ्रांस, पाकिस्तान और बांग्लादेश शामिल हैं।
भारतीय प्रवासियों द्वारा भेजा गया धन
भारतीय रिजर्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार, 2023 में विदेश में रहने वाले भारतीयों ने अपने परिवारों को 119 अरब डॉलर भेजे। यह राशि भारत के व्यापार घाटे के आधे हिस्से को पूरा करने के लिए पर्याप्त है और यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से भी अधिक है।
अमेरिका से धन का प्रवाह
इस धन का सबसे बड़ा हिस्सा अमेरिका से आता है, जिसमें प्रवासी अपने परिवारों के लिए दवा, शिक्षा और घर के लिए कर्ज़ की किश्तें चुकाने के लिए पैसे भेजते हैं।
टैक्स का संभावित प्रभाव
अमेरिकी राष्ट्रपति का यह प्रस्तावित टैक्स प्रवासी श्रमिकों से अरबों डॉलर की राशि छीन सकता है, जो पहले से ही अमेरिका में टैक्स का भुगतान कर रहे हैं।
भारत की स्थिति
विश्व बैंक के अनुसार, भारत 2008 से विदेश से धन प्राप्त करने वाले देशों में पहले स्थान पर है। 2001 में इसकी हिस्सेदारी 11% थी, जो अब बढ़कर 15% हो गई है।
प्रवासी आबादी का विकास
1990 में भारत की प्रवासी आबादी 66 लाख थी, जो 2024 में बढ़कर 1.85 करोड़ होने का अनुमान है।
टैक्स के प्रभाव का आकलन
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि विदेश से भेजे जाने वाले धन में 10 से 15% की कमी आती है, तो भारत को हर साल 12 से 18 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है।
राज्यों पर प्रभाव
इस प्रस्तावित टैक्स का सबसे बड़ा असर केरल, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों के परिवारों पर पड़ेगा, जहां शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए विदेश से धन भेजा जाता है।
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
विशेषज्ञों का कहना है कि यह टैक्स घरेलू खपत को प्रभावित कर सकता है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से ही वैश्विक अनिश्चितता और महंगाई से जूझ रही है।
अंतरराष्ट्रीय प्रभाव
अमेरिका में रहने वाले प्रवासियों द्वारा भेजे जाने वाले धन में कमी का सबसे अधिक असर मेक्सिको, भारत, चीन और वियतनाम पर पड़ेगा।
भ्रम और स्पष्टता
हालांकि इस प्रस्तावित टैक्स के संबंध में कुछ भ्रम हैं, इसे लागू करने के लिए सीनेट की सहमति और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर की आवश्यकता होगी।