बीरबल की कहानी: अज्ञानता और अंधविश्वास का पाठ

इस लेख में बीरबल की एक दिलचस्प कहानी प्रस्तुत की गई है, जिसमें वह बादशाह अकबर को अज्ञानता और अंधविश्वास के बारे में एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाते हैं। बीरबल की चतुराई और योजना से यह स्पष्ट होता है कि कैसे लोग बिना सोचे-समझे भेड़चाल में चलने लगते हैं। यह कहानी न केवल मनोरंजक है, बल्कि ज्ञान और विवेक की आवश्यकता पर भी जोर देती है।
 | 

एक प्रश्न का उत्तर

एक दिन बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा, "बीरबल, अविद्या का क्या अर्थ है?"


बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, "जहाँपनाह, मुझे चार दिन की छुट्टी चाहिए। मैं आपको इसका उदाहरण दिखा दूंगा।"


अकबर ने उसे छुट्टी दे दी।


बीरबल की योजना

बीरबल एक मोची के पास गया और कहा, "भाई, मुझे एक जूती बनानी है। नाप की जरूरत नहीं, बस डेढ़ फुट लंबी और एक बित्ता चौड़ी हो। उस पर सोने-चाँदी के धागे और हीरे-जवाहरात जड़ देना।"


मोची ने हैरान होकर वैसी ही जूती बना दी। बीरबल ने पैसे दिए और एक जूती अपने पास रख ली, जबकि दूसरी मस्जिद में रख दी।


मस्जिद में चमत्कार

अगली सुबह, मौलवी ने जूती देखी और कहा, "यह इंसान की नहीं, बल्कि अल्लाह की जूती होगी!"


उसने जूती को माथे से लगाया और चूमा। अन्य लोग भी ऐसा करने लगे।


धीरे-धीरे यह खबर अकबर तक पहुँची, और उन्होंने भी वही किया, आदेश दिया कि इसे मस्जिद में सम्मानपूर्वक रखा जाए।


सच्चाई का पर्दाफाश

कुछ दिन बाद, बीरबल लौट आया। उसने अकबर को दूसरी जूती दिखाते हुए कहा, "जहाँपनाह, हमारे परदादा की पुरानी जूती चोरी हो गई। बस यही बची है।"


अकबर ने दोनों जूतियाँ देखीं और शर्म से सिर पीट लिया।


बीरबल का संदेश

बीरबल ने कहा, "जहाँपनाह, यही है अविद्या। जब सच्चाई का ज्ञान न हो और लोग बिना सोचे-समझे भेड़चाल में चलें, वही अंधविश्वास है।"


सीख

अंधविश्वास वहीं जन्म लेता है जहाँ ज्ञान की कमी होती है। विवेक और सत्य की पहचान ही इंसान को सही मार्ग दिखाती है।