ज्ञान का घमंड: एक पंडित की कहानी

एक विद्वान पंडित की कहानी

किसी समय की बात है, एक गांव में एक विद्वान पंडितजी निवास करते थे। उन्होंने विभिन्न विषयों में गहरी शिक्षा प्राप्त की थी और अपने ज्ञान पर उन्हें गर्व था। वह अक्सर अपने ज्ञान का प्रदर्शन करते और दूसरों को नीचा दिखाने का प्रयास करते थे।
नदी में नाव का सफर
एक दिन, पंडितजी को एक अन्य गांव जाना था, लेकिन रास्ते में एक नदी आई। उन्होंने एक नाव किराए पर ली और आराम से उसमें बैठ गए। नाविक एक साधारण व्यक्ति था। नाव में बैठते ही पंडितजी का अभिमान जाग उठा। उन्होंने नाविक से पूछा, "तुमने कितनी शिक्षा प्राप्त की है?" नाविक ने उत्तर दिया, "बस थोड़ा बहुत पढ़ा हूं, बाकी काम में लग गया।"
पंडितजी ने उसे नीचा दिखाते हुए कहा, "तुम्हें व्याकरण का ज्ञान नहीं है?" नाविक ने सिर हिलाया। पंडितजी ने फिर कहा, "तुम्हारा जीवन व्यर्थ गया।" पंडितजी गर्व से बोले, "मैंने ज्ञान का सही उपयोग किया है।"
नाविक चुप रहा। थोड़ी देर बाद, तेज हवा चलने लगी और नाव डगमगाने लगी। नाविक ने पूछा, "पंडितजी, क्या आपको तैरना आता है?" पंडितजी ने डरते हुए कहा, "नहीं।" नाविक ने हंसते हुए कहा, "अब तुम्हें अपने ज्ञान की मदद लेनी होगी, क्योंकि नाव डूबने वाली है।"
नाविक ने समझदारी से नाव को किनारे पर लाया। किनारे पर पहुंचते ही पंडितजी को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्हें समझ में आया कि ज्ञान का आकार मायने नहीं रखता, बल्कि उसका उपयोग महत्वपूर्ण है।
सीख
हमें कभी भी किसी को उसके ज्ञान या स्थिति के आधार पर नीचा नहीं दिखाना चाहिए। अपने ज्ञान का घमंड नहीं करना चाहिए। हर व्यक्ति में कोई न कोई विशेषता होती है, और सभी में कुछ कमी भी होती है। इसलिए हमें सभी को समान दृष्टि से देखना चाहिए।