काल भैरव के आठ रूप: पूजा के महत्व और विशेषताएँ

इस लेख में काल भैरव के आठ रूपों का विस्तृत वर्णन किया गया है, जो विभिन्न शक्तियों और कार्यों के अधिष्ठाता हैं। जानें कि कैसे इनकी पूजा से ज्ञान, समृद्धि और सुरक्षा प्राप्त की जा सकती है। प्रत्येक रूप का विशेष महत्व और पूजा विधि के बारे में जानकारी प्राप्त करें। काल भैरव जयंती के अवसर पर इनकी आराधना का महत्व भी समझें।
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काल भैरव के आठ रूप: पूजा के महत्व और विशेषताएँ

काल भैरव के आठ रूप

काल भैरव के आठ रूप: पूजा के महत्व और विशेषताएँ

काल भैरव के 8 रूप

काल भैरव के रूपों की संख्या; हिंदू धर्म में भगवान शिव के विभिन्न रूपों में काल भैरव का स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली और रहस्यमय माना जाता है। यह दिव्य रूप अधर्म, अन्याय और नकारात्मक शक्तियों का नाश करते हैं। काल भैरव जयंती, जो इस वर्ष 12 नवंबर 2025 (बुधवार) को मनाई जाएगी, भगवान भैरव के जन्मदिन के रूप में श्रद्धा और भक्ति से मनाई जाती है। काशी के कोतवाल कहे जाने वाले भैरव देव धर्म की रक्षा और साधकों की सुरक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। शास्त्रों में इनके आठ रूपों (अष्ट भैरव) का उल्लेख है, जो विभिन्न दिशाओं, शक्तियों और कार्यों के अधिष्ठाता हैं। इनकी आराधना से ज्ञान, समृद्धि, सुरक्षा और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

शिव के आठ भैरव रूप

1. असितांग भैरव- सृजन और नई शुरुआत के देव

पूर्व दिशा के अधिपति असितांग भैरव सृजन शक्ति और नई शुरुआत के प्रतीक माने जाते हैं। इनकी उपासना से जीवन में नई ऊर्जा, प्रेरणा और दिशा प्राप्त होती है। साधक के भीतर रचनात्मकता जागृत होती है और पूर्व जन्मों के शुभ कर्मों का फल जीवन में प्रकट होता है।

2. रुरु भैरव- प्रतिष्ठा और शत्रु विजय के रक्षक

रुरु भैरव दक्षिण-पूर्व दिशा के स्वामी हैं, जो साहस, प्रतिष्ठा और सामर्थ्य प्रदान करते हैं। इनकी आराधना से व्यक्ति विरोधी परिस्थितियों में भी विजयी रहता है। सामाजिक, राजनीतिक या व्यावसायिक क्षेत्र में ऊंचा स्थान पाने की आकांक्षा रखने वालों के लिए रुरु भैरव की कृपा अत्यंत शुभ मानी गई है।

3. चण्ड भैरव- संघर्ष और विजय के प्रतीक

दक्षिण दिशा के अधिपति चण्ड भैरव जीवन के संघर्षों में साहस और विजय का वरदान देते हैं। इनकी पूजा से व्यक्ति में आत्मविश्वास, निडरता और दृढ़ संकल्प की भावना आती है। जो भी व्यक्ति निरंतर चुनौतियों का सामना कर रहा हो, उसके लिए यह भैरव अडिग सहारा बनते हैं।

4. क्रोध भैरव- बाधा नाशक और शक्ति प्रदाता

क्रोध भैरव दक्षिण-पश्चिम दिशा के स्वामी हैं, जो जीवन की रुकावटों और नकारात्मक शक्तियों को नष्ट करते हैं। इनकी उपासना से भय, असुरक्षा और आलस्य दूर होता है। साधक में मानसिक स्थिरता और आंतरिक शक्ति का संचार होता है, जिससे वह हर परिस्थिति में स्थिर रह पाता है।

5. उन्मत्त भैरव- भ्रम और मानसिक उलझनों से मुक्ति

पश्चिम दिशा के उन्मत्त भैरव व्यक्ति के मन में छिपे संशय, भ्रम और मोह को दूर करते हैं। इनकी कृपा से मन शांत होता है और आत्मबोध की अनुभूति होती है। साधक को अपने विचारों में स्पष्टता मिलती है और वह जीवन के सही मार्ग को पहचान पाता है।

6. कपाल भैरव- कर्म सिद्धि और आर्थिक उन्नति

उत्तर-पश्चिम दिशा के कपाल भैरव कर्म, धन और प्रतिष्ठा के क्षेत्र के संरक्षक हैं। जो व्यक्ति मेहनत करता है, उन्हें इनके आशीर्वाद से पूर्ण फल मिलता है। व्यापार, नौकरी और आर्थिक स्थिरता में वृद्धि होती है तथा व्यक्ति के कर्म शुभ दिशा में प्रवाहित होने लगते हैं।

7. भीषण भैरव- भय और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा

उत्तर दिशा के भीषण भैरव भय, ईर्ष्या और अदृष्ट शक्तियों से साधक की रक्षा करते हैं। इनकी उपासना से आत्मविश्वास और मानसिक शक्ति में वृद्धि होती है। व्यक्ति के भीतर छिपे डर समाप्त होते हैं और वह बाहरी नकारात्मक प्रभावों से सुरक्षित रहता है।

8. संहार भैरव- मुक्ति और नवजीवन के देव

उत्तर-पूर्व दिशा के संहार भैरव समस्त भैरवों के संहारक रूप माने गए हैं। वे पुराने कर्मों, बंधनों और पीड़ाओं से मुक्ति प्रदान करते हैं। इनकी पूजा से साधक का जीवन शुद्ध होकर नए आरंभ की ओर बढ़ता है और आत्मा में दिव्य स्वतंत्रता का अनुभव होता है।