कला में सहयोग और सम्मान की आवश्यकता

इस लेख में कला के गहरे अर्थ और भारतीय संस्कृति में इसके महत्व पर चर्चा की गई है। यह बताया गया है कि कैसे आज के कलाकारों में सहयोग और सम्मान की भावना की कमी हो रही है। क्या हम अपनी साधना के साथ-साथ दूसरों की साधना का भी सम्मान कर रहे हैं? जानें इस महत्वपूर्ण विषय पर और अधिक।
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कला का गहरा अर्थ

कला में सहयोग और सम्मान की आवश्यकता


कला, विशेषकर संगीत और नृत्य, केवल एक प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह एक गहन साधना है। इसमें कलाकार अपनी आत्मा को सुर, ताल और भाव के माध्यम से विश्व के साथ जोड़ता है। भारतीय संस्कृति में कला का अर्थ केवल 'स्वयं को व्यक्त करना' नहीं है, बल्कि 'सर्व के साथ सामंजस्य स्थापित करना' भी है।


वर्तमान में कला का विचलन

कला में सहयोग और सम्मान की आवश्यकता


हालांकि, आजकल एक विचलन देखने को मिल रहा है। कलाकार और विद्यार्थी अक्सर केवल अपने स्वर को सुनना चाहते हैं, जबकि दूसरों की कला और विचारों के प्रति सहनशीलता कम होती जा रही है। यह स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है जब यह हमारे संगीत संस्थानों में भी देखने को मिलती है, जहाँ कला के साथ संस्कार भी सिखाए जाते हैं।


कला का सहयोगात्मक स्वरूप

कला प्रतिस्पर्धा नहीं, सहयोग है


गायन, वादन और नृत्य — ये सभी कलाएँ एक ही ईश्वर के विभिन्न रूप हैं। जब गायक अपने स्वर में नर्तक की गति को महसूस करता है और वादक दोनों के भावों के साथ तादात्म्य स्थापित करता है, तब एक दिव्य अनुभव उत्पन्न होता है।


लेकिन जब एक कलाकार दूसरे की कला को हीन दृष्टि से देखता है, तो वह सामंजस्य की डोर को तोड़ देता है।


कला कभी भी 'प्रतिस्पर्धा' नहीं रही है; यह तो 'सह-यात्रा' है।


भारतीय संस्कृति का सार

भारतीय संस्कृति का मर्म — सामंजस्य और आदर


हमारे पूर्वजों ने सिखाया था कि कलाकार का सबसे बड़ा आभूषण उसका विनम्र हृदय होता है। गुरु-शिष्य परंपरा की नींव 'आदर और आभार' पर आधारित है।


लेकिन आज की युवा पीढ़ी कला को केवल मंच या प्रसिद्धि से जोड़ने लगी है, जिससे हमारी संस्कृति की आत्मा की संवेदना कमजोर होती जा रही है।


यदि हम केवल अपने स्वर को सुनेंगे और दूसरों के स्वर को दबाएँगे, तो यह भारतीय कला की आत्मा को मूक कर देगा।


विचार का समय

विचार का समय


अब समय है कि हम आत्ममंथन करें — क्या हम अपनी साधना के साथ-साथ दूसरों की साधना का भी सम्मान कर रहे हैं? क्या हम संवाद के लिए खुले हैं, या केवल अपनी ध्वनि में खोए हुए हैं?


कला तभी फलती है जब उसमें सुनने की विनम्रता और सहयोग की भावना हो। अपने सुरों को सजाइए, उन्हें निखारिए — लेकिन दूसरों के सुरों को सुनने का साहस भी रखिए।


समापन विचार

“कला का सौंदर्य केवल तब तक जीवित है, जब तक उसमें संवाद, सहयोग और सम्मान की ध्वनि गूंजती है।”


(अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कत्थक नृत्यांगना जयपुर घराना “टांप ग्रेड” दूरदर्शन कलाकार, आई.सी. सी.आर, मिनिस्ट्री ऑफ़ कलर फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया एब्रॉड सेल भारत सरकार)