अहमदाबाद में गुफा चित्र प्रदर्शनी का आयोजन
अहमदाबाद में सर्कल ऑफ आर्ट फाउंडेशन द्वारा आयोजित "गुफा चित्र" प्रदर्शनी में अजंता-एलोरा की गुफाओं की चित्रकला और फोटोग्राफी का प्रदर्शन किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता उद्योगपति श्री मगनभाई पटेल ने की, जिन्होंने बौद्ध विरासत और सम्राट अशोक के शिलालेखों के महत्व पर प्रकाश डाला। प्रदर्शनी में 50 कलाकारों द्वारा बनाई गई 70 से अधिक गुफा चित्रकलाएं शामिल थीं, जिन्हें मोमबत्ती की रोशनी में देखा गया। यह आयोजन कला और संस्कृति के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
Jun 19, 2025, 10:46 IST
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गुफा चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन
सर्कल ऑफ आर्ट फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक विशेष प्रदर्शनी "गुफा चित्र" का आयोजन 6 से 8 जून, 2025 को अहमदाबाद के हठीसिंह विजुअल आर्ट सेंटर में किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता गुजरात के प्रमुख उद्योगपति और समाजसेवी श्री मगनभाई पटेल ने की, जो मुख्य अतिथि और दानदाता के रूप में उपस्थित थे। उनके साथ "विशाला" के संस्थापक श्री सुरेन्द्रभाई पटेल और प्रसिद्ध इंटीरियर आर्किटेक्ट श्री नीरवभाई शाह भी विशेष अतिथि के रूप में मौजूद थे। इस प्रदर्शनी का आयोजन श्री अजय चौहान, श्री प्रीति कनेरिया और श्री राजेश बरैयाने ने किया, जो लगातार कलाकारों को आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं। पिछले वर्ष भी सर्कल ऑफ आर्ट ने भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं को दर्शाने वाली "पिछवाई" कला का आयोजन किया था, जिसमें श्री मगनभाई पटेल ने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया था।
अजंता-एलोरा की गुफाओं का महत्व
इस अवसर पर श्री मगनभाई पटेल ने बताया कि भारत के औरंगाबाद में स्थित एलोरा की गुफाएँ यूनेस्को की विश्व धरोहर हैं। यह गुफाएँ दुनिया के सबसे बड़े रॉक-कट गुफा परिसरों में से एक हैं, जिसमें हिंदू, बौद्ध और जैन गुफाएँ शामिल हैं। ये गुफाएँ भारतीय शैलकृत वास्तुकला का एक अद्वितीय उदाहरण हैं। अजंता-एलोरा की गुफाएँ भी यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल हैं, जिनमें 30 बौद्ध गुफा स्मारक शामिल हैं, जिन्हें बौद्ध धार्मिक कला की उत्कृष्ट कृतियों के रूप में माना जाता है।

गुफाओं का ऐतिहासिक संदर्भ
अजंता की गुफाओं का उल्लेख कई चीनी बौद्ध यात्रियों के संस्मरणों में मिलता है। ये गुफाएँ दक्कन के पठार में वाघुर नदी की घाटी की चट्टानी दीवार में स्थित हैं। घाटी में कई झरने हैं, जिनकी आवाज़ नदी के तेज़ बहाव के दौरान सुनी जा सकती है।

गुजरात में बौद्ध विरासत
श्री मगनभाई पटेल ने आगे बताया कि जूनागढ़ में बौद्ध विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा गिरनार पर्वत के रास्ते में स्थित है, जिसे सम्राट अशोक के शिलालेख के रूप में जाना जाता है। यहाँ करीब 14 अशोक शिलालेख हैं, जो पाली भाषा में ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं। ये शिलालेख विचारों की शुद्धता, करुणा और कृतज्ञता का उल्लेख करते हैं।
अशोक के शिलालेखों का महत्व
श्री मगनभाई पटेल ने अपने भाषण में कहा कि सम्राट अशोक के शिलालेख भारत, बांग्लादेश, नेपाल, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के क्षेत्रों में फैले हुए हैं। ये शिलालेख बौद्ध धर्म के पहले प्रमाण हैं और भारत के सबसे प्राचीन लिखित ग्रंथों में से एक माने जाते हैं।

धम्म लिपि और उसके सिद्धांत
अशोक ने अपने शिलालेखों में धम्म लिपि का उपयोग किया, जिसमें उनकी धर्म संबंधी नीति का विस्तार से वर्णन किया गया है। इन शिलालेखों में अहिंसा, माता-पिता की आज्ञाकारिता और मानवीय व्यवहार के सिद्धांतों का उल्लेख है। ये शिलालेख अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने और उनके सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों का भी वर्णन करते हैं।

प्रदर्शनी का समापन
इस प्रदर्शनी में 50 कलाकारों द्वारा बनाई गई 70 से अधिक गुफा चित्रकलाएं प्रदर्शित की गईं, जिन्हें मोमबत्ती की रोशनी में देखा गया। कार्यक्रम के अंत में कलाकारों ने अपनी पेंटिंग के साथ गणमान्य व्यक्तियों के साथ तस्वीरें खिंचवाईं।