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महेश्वरस्वामी मेले में महिलाओं का प्रवेश वर्जित: एक अनोखी परंपरा

कर्नाटक के दावणगेरे जिले में महेश्वरस्वामी मेला एक अनोखी परंपरा के लिए जाना जाता है, जिसमें केवल पुरुषों को ही प्रवेश की अनुमति होती है। इस मेले में महिलाओं का आना पूरी तरह से प्रतिबंधित है, जो पिछले 50-60 वर्षों से चला आ रहा है। मेले में केले के छिलके से भविष्यवाणी करने की परंपरा है, और इसे भव्यता से सजाया जाता है। जानें इस विशेष मेले की और भी रोचक बातें।
 

महेश्वरस्वामी मेले की विशेषताएँ

कर्नाटक के दावणगेरे जिले में आयोजित होने वाला महेश्वरस्वामी मेला इस समय चर्चा का विषय बना हुआ है। यह मेला अपनी अनोखी परंपराओं के लिए जाना जाता है, जिसमें दूर-दूर से लोग शामिल होने आते हैं। इस मेले में केवल पुरुषों को ही प्रवेश की अनुमति होती है, जबकि महिलाओं का आना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। यह परंपरा पिछले 50-60 वर्षों से चली आ रही है।


महिलाओं के लिए प्रतिबंध

महेश्वरस्वामी मेला हर साल दावणगेरे के बसपुरा क्षेत्र में आयोजित होता है। यह मेला तीन दिनों तक चलता है, जिसमें अमावस्या के दिन से शुरुआत होती है। मेले में शामिल होने वाले पुरुष केले के छिलके से भविष्यवाणी करने की परंपरा का पालन करते हैं। हालांकि, महिलाओं को मेले में प्रवेश नहीं मिलता है।


मेले की परंपराएँ

महेश्वरस्वामी की पूजा पिछले चार शताब्दियों से की जा रही है। यहां एक विशाल वृक्ष के नीचे भगवान की पूजा होती है, और लोग उनसे परिवार की सुख-शांति की कामना करते हैं। मेले के दौरान, मंदिर को भव्यता से सजाया जाता है और भंडारे की व्यवस्था की जाती है, जहां सभी लोग जमीन पर बैठकर भोजन करते हैं।


केले के छिलकों की मान्यता

महिलाओं के मेले में आने पर सख्त सजा का प्रावधान है। यदि कोई महिला गलती से आ जाती है, तो भक्त उसे केले के छिलके फेंककर दंडित करते हैं। पुजारी इन छिलकों को पुष्करणी जल में विसर्जित करते हैं। माना जाता है कि यदि छिलके तैरते हैं, तो यह गांव के लिए शुभ संकेत है, जबकि डूबने पर विपत्ति का संकेत मिलता है।