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भारतीय महिला क्रिकेट की सफलता में कोचों की भूमिका

भारतीय महिला क्रिकेट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक जीत हासिल की है, जिसमें कोचों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस लेख में हम उन कोचों की कहानियों पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जिन्होंने खिलाड़ियों को प्रेरित किया और उन्हें सफलता की ओर अग्रसर किया। जानें कैसे विभिन्न राज्यों के कोचों ने अपने खिलाड़ियों के आत्मविश्वास को बढ़ाया और उन्हें नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया। यह कहानी न केवल खिलाड़ियों की है, बल्कि उन कोचों की भी है जिन्होंने उनके सपनों को साकार करने में मदद की।
 

कोचों की हिचकिचाहट और खिलाड़ियों का आत्मविश्वास

हरियाणा के एक कोच को जब महिलाओं की टीम को प्रशिक्षित करने का कार्य सौंपा गया, तो उन्होंने पहले संकोच किया। इसी तरह, मध्य प्रदेश में एक कोच को यह चिंता थी कि उनकी अकादमी में एकमात्र लड़की क्या लड़कों के बीच खेल पाएगी। लेकिन उस लड़की ने आत्मविश्वास से कहा, “सर, मैं कर लूंगी... क्या आप तैयार हैं?” हिमाचल प्रदेश में भी कुछ ऐसा ही हुआ, जहां कोच ने पहले दूसरे राज्य की लड़की को शामिल करने में संकोच किया, लेकिन बाद में उन्होंने अनुमति दे दी।


खिलाड़ियों की सफलता और कोचों का समर्थन

किसी ने नहीं सोचा था कि जिन लड़कियों को वे प्रशिक्षित कर रहे हैं, वही भारतीय महिला क्रिकेट का इतिहास बदल देंगी और ऐसा क्षण लाएंगी, जिसे लोग पुरुष टीम की 1983 की जीत के समान मानते हैं। खिलाड़ियों ने ट्रॉफी जीतकर देश का नाम रोशन किया, लेकिन उनके पीछे वे कोच थे, जिन्होंने सपने दिखाए, हौसला बढ़ाया और कठिन समय में भी उन्हें मैदान तक पहुंचाया।


पूनम वस्त्राकर की कहानी

मध्य प्रदेश के शहडोल की कहानी भी प्रेरणादायक है। पूनम वस्त्राकर, जो इस बार विश्व कप टीम का हिस्सा नहीं थीं, ने पिछले कुछ वर्षों में भारतीय टीम में अपनी पहचान बनाई है। उनके कोच अशुतोष श्रीवास्तव बताते हैं कि जब उन्होंने पहली बार पूनम को देखा, तो उन्हें लगा कि कोई लड़का खेल रहा है, क्योंकि उसने लड़कों जैसे कपड़े पहने थे। उन्होंने मजाक में पूछा, “क्या तुम क्रिकेट खेलोगी?” और वह तुरंत अकादमी में शामिल हो गई।


अमनजोत कौर की यात्रा

अमनजोत कौर की कहानी पंजाब से शुरू होकर विश्व कप जीत तक पहुंची। उनके कोच नागेश गुप्ता ने बताया कि शुरुआत में अमनजोत केवल तेज गेंदबाज थीं, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने बल्लेबाजी में भी खुद को साबित किया और एक उत्कृष्ट ऑलराउंडर बन गईं। विश्व कप फाइनल में उनका प्रदर्शन निर्णायक साबित हुआ।


हिमाचल प्रदेश की एचपीसीए अकादमी

हिमाचल प्रदेश में एचपीसीए की महिला क्रिकेट अकादमी में कोच पवन सेन के मार्गदर्शन में रेनुका ठाकुर और हर्लीन देओल जैसी खिलाड़ी तैयार हुईं। पवन सेन बताते हैं कि शुरुआत में उन्होंने हर्लीन को पंजाब से आने के कारण मना कर दिया था, लेकिन माता-पिता के आग्रह पर उन्हें मौका दिया। बाद में हर्लीन बल्लेबाजी में इतनी निपुण हुईं कि आज वह टीम की मुख्य बल्लेबाजों में से एक हैं।


जेमिमा रोड्रिग्स का संघर्ष

जब जेमिमा रोड्रिग्स को टूर्नामेंट के बीच में टीम से बाहर किया गया, तो उन्होंने अपने बचपन के कोच प्रशांत शेट्टी से बात की। शेट्टी ने उन्हें मानसिक रूप से मजबूत रहने और छोटे-छोटे लक्ष्य तय करने की सलाह दी। नतीजा यह हुआ कि जेमिमा ने अगले ही मैच में शानदार 76 रन बनाए और फिर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल में 127 रनों की ऐतिहासिक पारी खेलकर भारत को जीत दिलाई।


लड़कियों के क्रिकेट में चुनौतियाँ

भारत में आज भी लड़कियों का क्रिकेट खेलना आसान नहीं है। कोचों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे खिलाड़ियों के परिवारों को मनाना, सुविधाओं की कमी और अभ्यास के लिए समान माहौल बनाना। अमनजोत के कोच नागेश गुप्ता कहते हैं कि सबसे बड़ी चुनौती लड़कियों को आत्मविश्वास दिलाना था, ताकि वे सहज होकर खेल सकें।


महिपाल का अनुभव

हरियाणा के कोच महिपाल, जिन्होंने शैफाली वर्मा के साथ काम किया, बताते हैं कि शुरुआत में उन्हें महिलाओं की टीम को प्रशिक्षित करने में डर लगता था, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने खुद को बदला और पूरी मेहनत से टीम तैयार की।


कोचों की मेहनत का फल

महिला क्रिकेट की इस जीत ने न केवल खिलाड़ियों का भविष्य बदला है बल्कि उन कोचों को भी नई पहचान दी है, जिन्होंने शुरुआत से ही इन खिलाड़ियों पर भरोसा किया। जैसा कि पवन सेन कहते हैं, “यह जीत मेरे कोचिंग करियर की सबसे बड़ी उपलब्धि है, एक सपना जो अब पूरा हुआ है।”


कोचों की भूमिका

यह विश्व कप केवल खिलाड़ियों की जीत नहीं है, बल्कि उन गुरुओं की भी जीत है, जिन्होंने इन बेटियों के हाथ में बल्ला थमाया और कहा, “तुम कर सकती हो।” आज जब भारतीय महिला क्रिकेट नई ऊंचाइयों पर पहुंचा है, तो इसमें उनके कोचों की मेहनत और समर्पण की गहरी छाप दिखाई देती है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन गई है।