भारत की बायोटेक्नोलॉजी में नई ऊंचाइयाँ: 2030 तक 300 अरब डॉलर की बायोइकोनॉमी का लक्ष्य
भारत ने बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है, जिसमें BioE3 नीति के तहत नई पहलें शामिल हैं। केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि 2030 तक बायोइकोनॉमी 300 अरब डॉलर तक पहुँचने की संभावना है। इस नीति के अंतर्गत युवाओं को नवाचार के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके साथ ही, स्पेस बायोटेक्नोलॉजी में भी भारत की महत्वाकांक्षाएँ बढ़ रही हैं। यह यात्रा विज्ञान और नीति के संगम को दर्शाती है, जो आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण को एक साथ आगे बढ़ा रही है।
Aug 27, 2025, 18:39 IST
भारत की बायोटेक्नोलॉजी में प्रगति
भारत ने पिछले दशक में बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में जो प्रगति की है, वह न केवल विज्ञान और तकनीक की उपलब्धियों का प्रतीक है, बल्कि यह देश की आर्थिक और सामाजिक संरचना में भी महत्वपूर्ण बदलाव लाने वाला है। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि भारत की बायोइकोनॉमी वर्ष 2030 तक 300 अरब डॉलर (लगभग 25 लाख करोड़ रुपये) तक पहुँचने की संभावना है, जो इस दिशा में एक नए युग की शुरुआत का संकेत देती है।
पिछले वर्ष लागू की गई BioE3 (Biotechnology for Economy, Environment and Employment) नीति ने बायोटेक क्षेत्र को नई दिशा दी है। एक वर्ष में ही देश ने जैव-निर्माण, सेल और जीन थैरेपी, जलवायु-स्मार्ट कृषि, कार्बन कैप्चर और फंक्शनल फूड्स जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की है। मोहाली में भारत के पहले बायोमैन्युफैक्चरिंग संस्थान की स्थापना और बायो-आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हब्स का गठन इस बात का प्रमाण है कि भारत न केवल शोध कर रहा है, बल्कि इसे व्यावहारिक स्तर पर उद्योग और समाज तक पहुँचाने का प्रयास भी कर रहा है।
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इस नीति की एक प्रमुख पहल BioE3 Youth Challenge है, जो छात्रों, शोधकर्ताओं और स्टार्टअप्स को स्वास्थ्य, कृषि, पर्यावरण और उद्योग की चुनौतियों के लिए सुरक्षित और टिकाऊ जैविक समाधान विकसित करने के लिए आमंत्रित करती है। इस कार्यक्रम के तहत हर महीने 10 विजेताओं को ₹1 लाख का पुरस्कार और मार्गदर्शन प्रदान किया जाएगा। इसके अलावा, चुने गए 100 नवाचारों को ₹25 लाख तक का अनुदान और BIRAC के माध्यम से प्रूफ-ऑफ़-कॉन्सेप्ट विकसित करने का अवसर मिलेगा। यह कदम युवाओं को केवल नौकरी खोजने वाला नहीं, बल्कि नवाचार और रोजगार सृजन का वाहक बनाएगा।
बायोटेक्नोलॉजी का दायरा अब केवल पृथ्वी तक सीमित नहीं है। DBT और ISRO के बीच समझौता स्पेस बायोटेक्नोलॉजी की दिशा में भारत की महत्वाकांक्षा को दर्शाता है। अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर किए गए प्रयोग इस क्षेत्र को भविष्य की अंतरिक्ष यात्राओं और मानव अस्तित्व की नई संभावनाओं से जोड़ते हैं। डॉ. जितेंद्र सिंह के अनुसार, बायोइकोनॉमी केवल आर्थिक विकास का साधन नहीं, बल्कि पर्यावरणीय स्थिरता का भी आधार है। जैव-आधारित समाधान न केवल रोजगार पैदा करेंगे, बल्कि कार्बन उत्सर्जन कम करने, स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन और स्वास्थ्य सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण योगदान देंगे।
प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. अजय कुमार सूद ने कहा है कि जीवविज्ञान अब कोई अलग अनुशासन नहीं रहा। यह इंजीनियरिंग, वास्तुकला और अंतरिक्ष विज्ञान के साथ मिलकर नई संभावनाएँ खोल रहा है। जैसे जैव-अनुकूल शहरी डिज़ाइन, शैवाल-आधारित कार्बन कैप्चर, अंग-प्रतिरूपण और ऑर्गन-ऑन-ए-चिप, बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक और स्पेस बायोलॉजी प्रयोग। यह संगम भारत की ‘ग्रीन, क्लीन और प्रॉस्पेरस’ राष्ट्र की परिकल्पना को साकार करने में सहायक होगा।
भारत की बायोइकोनॉमी की यात्रा यह दर्शाती है कि विज्ञान और नीति का संगम कैसे आर्थिक विकास, पर्यावरण संरक्षण और रोजगार सृजन को एक साथ आगे बढ़ा सकता है। BioE3 नीति ने देश को केवल अनुसंधान आधारित राष्ट्र नहीं, बल्कि नवाचार और जैव-निर्माण की वैश्विक शक्ति बनने की राह पर ला खड़ा किया है। 2030 तक 300 अरब डॉलर की बायोइकोनॉमी का लक्ष्य केवल आंकड़ा नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत और विश्वगुरु भारत की दिशा में एक ठोस कदम है।