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मार्गशीर्ष में तुलसी चालीसा का महत्व और पाठ विधि

मार्गशीर्ष का महीना धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जिसमें तुलसी चालीसा का पाठ विशेष फलदायी माना जाता है। इस लेख में जानें कि कैसे नियमित रूप से तुलसी के समक्ष दीप जलाकर और चालीसा का पाठ करके सुख-समृद्धि प्राप्त की जा सकती है। इसके साथ ही, पाठ विधि और इसके महत्व के बारे में भी जानकारी प्राप्त करें।
 

तुलसी चालीसा का महत्व

मार्गशीर्ष का महीना धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसे भगवान विष्णु का प्रिय महीना माना जाता है। इस दौरान भगवान कृष्ण और देवी तुलसी की पूजा करना विशेष फलदायी होता है। मान्यता है कि इस महीने में नियमित रूप से तुलसी के समक्ष घी का दीपक जलाने और तुलसी चालीसा का पाठ करने से सुख-समृद्धि और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। ऐसा कहा जाता है कि इस मास में तुलसी चालीसा का पाठ करने से घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती।


तुलसी चालीसा का पाठ

श्री तुलसी महारानी, करूं विनय सिरनाय।


जो मम हो संकट विकट, दीजै मात नशाय।।


नमो नमो तुलसी महारानी, महिमा अमित न जाय बखानी।


दियो विष्णु तुमको सनमाना, जग में छायो सुयश महाना।।


विष्णुप्रिया जय जयतिभवानि, तिहूँ लोक की हो सुखखानी।


भगवत पूजा कर जो कोई, बिना तुम्हारे सफल न होई।।


जिन घर तव नहिं होय निवासा, उस पर करहिं विष्णु नहिं बासा।


करे सदा जो तव नित सुमिरन, तेहिके काज होय सब पूरन।।


कातिक मास महात्म तुम्हारा, ताको जानत सब संसारा।


तव पूजन जो करैं कुंवारी, पावै सुन्दर वर सुकुमारी।।


कर जो पूजन नितप्रति नारी, सुख सम्पत्ति से होय सुखारी।


वृद्धा नारी करै जो पूजन, मिले भक्ति होवै पुलकित मन।।


श्रद्धा से पूजै जो कोई, भवनिधि से तर जावै सोई।


कथा भागवत यज्ञ करावै, तुम बिन नहीं सफलता पावै।।


छायो तब प्रताप जगभारी, ध्यावत तुमहिं सकल चितधारी।


तुम्हीं मात यंत्रन तंत्रन, सकल काज सिधि होवै क्षण में।।


औषधि रूप आप हो माता, सब जग में तव यश विख्याता,


देव रिषी मुनि औ तपधारी, करत सदा तव जय जयकारी।।


वेद पुरानन तव यश गाया, महिमा अगम पार नहिं पाया।


नमो नमो जै जै सुखकारनि, नमो नमो जै दुखनिवारनि।।


नमो नमो सुखसम्पति देनी, नमो नमो अघ काटन छेनी।


नमो नमो भक्तन दुःख हरनी, नमो नमो दुष्टन मद छेनी।।


नमो नमो भव पार उतारनि, नमो नमो परलोक सुधारनि।


नमो नमो निज भक्त उबारनि, नमो नमो जनकाज संवारनि।।


नमो नमो जय कुमति नशावनि, नमो नमो सुख उपजावनि।


जयति जयति जय तुलसीमाई, ध्याऊँ तुमको शीश नवाई।।


निजजन जानि मोहि अपनाओ, बिगड़े कारज आप बनाओ।


करूँ विनय मैं मात तुम्हारी, पूरण आशा करहु हमारी।।


शरण चरण कर जोरि मनाऊं, निशदिन तेरे ही गुण गाऊं।


क्रहु मात यह अब मोपर दाया, निर्मल होय सकल ममकाया।।


मंगू मात यह बर दीजै, सकल मनोरथ पूर्ण कीजै।


जनूं नहिं कुछ नेम अचारा, छमहु मात अपराध हमारा।।


बरह मास करै जो पूजा, ता सम जग में और न दूजा।


प्रथमहि गंगाजल मंगवावे, फिर सुन्दर स्नान करावे।।


चन्दन अक्षत पुष्प् चढ़ावे, धूप दीप नैवेद्य लगावे।


करे आचमन गंगा जल से, ध्यान करे हृदय निर्मल से।।


पाठ करे फिर चालीसा की, अस्तुति करे मात तुलसा की।


यह विधि पूजा करे हमेशा, ताके तन नहिं रहै क्लेशा।।


करै मास कार्तिक का साधन, सोवे नित पवित्र सिध हुई जाहीं।


है यह कथा महा सुखदाई, पढ़े सुने सो भव तर जाई।।


तुलसी मैया तुम कल्याणी, तुम्हरी महिमा सब जग जानी।


भाव ना तुझे माँ नित नित ध्यावे, गा गाकर मां तुझे रिझावे।।


यह श्रीतुलसी चालीसा पाठ करे जो कोय।


गोविन्द सो फल पावही जो मन इच्छा होय।।