बिसरख: रावण की जन्मभूमि और दशहरे की अनोखी परंपरा
रावण का अमर नाम और बिसरख की विशेषता
तीन युग बीत जाने के बाद भी रावण का नाम श्रीराम के साथ अमर बना हुआ है। विजयदशमी के अवसर पर हर साल रावण के पुतले का दहन किया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि रावण का जन्मस्थान कहां है?
- ग्रेटर नोएडा के बिसरख गांव को रावण की जन्मस्थली माना जाता है, जैसा कि पौराणिक मान्यताओं में कहा गया है।
- इस गांव का प्राचीन नाम विश्वेशरा था, जो ऋषि विश्रवा के नाम पर रखा गया था।
- दशहरे के दिन बिसरख में रावण के पुतले का दहन नहीं होता, बल्कि उसकी विद्वता और ज्ञान की पूजा की जाती है।
ग्रेटर नोएडा: जब देशभर में रावण के पुतले का दहन किया जाता है, तब उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में बिसरख गांव में शोक मनाया जाता है। यहां रावण को जलाने के बजाय उसकी विद्वता और ज्ञान की पूजा की जाती है।
बिसरख का इतिहास और मान्यता
स्थानीय लोगों और पौराणिक कथाओं के अनुसार, बिसरख का नाम रावण के पिता ऋषि विश्रवा के नाम पर पड़ा। इसका प्राचीन नाम 'विश्वेशरा' था, जो समय के साथ बदलकर बिसरख हो गया। नोएडा के सरकारी गजट में भी इस गांव के ऐतिहासिक महत्व के प्रमाण मौजूद हैं। शिवपुराण में भी इस स्थान का उल्लेख है, जहां बताया गया है कि त्रेता युग में ऋषि विश्रवा का जन्म यहीं हुआ और उन्होंने यहां एक शिवलिंग की स्थापना की थी।
मंदिर के मुख्य पुजारी रामदास बताते हैं, "यह रावण की जन्मभूमि है। यह स्थान ऋषि पुलस्त्य मुनि का आश्रम था। यहां स्थापित शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ था, जिसकी सेवा ऋषि विश्रवा ने की। यहीं पर ऋषि विश्रवा के पुत्र रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और पुत्री सूपर्णखा का जन्म हुआ था।"
दशहरे पर विशेष पूजा
बिसरख की दशहरे मनाने की परंपरा अनोखी है। जहां अन्य स्थानों पर रावण का दहन होता है, वहीं बिसरख में लोग रावण की मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हैं। पुजारी रामदास कहते हैं, "यहां दशहरा मनाया जाता है, लेकिन रावण का दहन नहीं होता। यज्ञशाला के सामने रावण की मूर्ति रखकर हवन और पूजा होती है। हम उनका पुतला नहीं जलाते।"
गांव के निवासी रावण को अपने पूर्वज के रूप में मानते हैं। एक निवासी कृष्ण कुमार कहते हैं, "हम रावण को अपने पूर्वज, अपना बाबा मानते हैं। इसलिए यहां उनकी पूजा होती है।" एक अन्य निवासी संजीव बताते हैं, "यह एक प्राचीन शिव मंदिर है, जहां रावण जी पूजा किया करते थे। हमने जब से होश संभाला है, यही परंपरा देखते आ रहे हैं।"
आस्था और जिज्ञासा का केंद्र बिसरख
पहले यह मान्यता केवल स्थानीय स्तर तक सीमित थी, लेकिन सोशल मीडिया और इंटरनेट के माध्यम से इस गांव की कहानी दूर-दूर तक पहुंच गई है। अब यह मंदिर न केवल आस्था का, बल्कि पर्यटकों और जिज्ञासुओं के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन गया है।
ग्रेटर नोएडा वेस्ट में रहने वाले गिरीश पहली बार यहां आए। उन्होंने कहा, "मैंने इस मंदिर के बारे में बहुत सुना था कि यह रावण का जन्मस्थान है। यही जानने की उत्सुकता मुझे यहां खींच लाई।" यह प्रसिद्धि केवल आसपास तक ही सीमित नहीं है। केरल से अपने परिवार के साथ घूमने आईं पीता बताती हैं, "हमें गूगल से इस प्राचीन मंदिर के बारे में पता चला और हम इसे देखने के लिए यहां आए हैं। मेरे साथ मेरी मां, पति और बहन भी हैं।"
बिसरख गांव की यह अनूठी परंपरा हमें याद दिलाती है कि भारत की संस्कृति कितनी विविध है, जहां एक ही पात्र को अलग-अलग दृष्टिकोण से देखा जाता है - कहीं वह बुराई का प्रतीक है, तो कहीं प्रकांड विद्वान और अपना पूर्वज।