बायोसाइंस छात्रों ने जनक पलटा मगिलिगन से सीखा सतत जीवन जीने का तरीका
सतत विकास की दिशा में प्रेरणा
सॉफ्टविजन कॉलेज के बायोसाइंस विभाग के विद्यार्थियों ने जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट की निदेशिका, पद्मश्री डॉ. जनक पलटा मगिलिगन से सतत जीवनशैली के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की। 77 वर्षीय जनक दीदी के साथ बिताए गए समय ने छात्रों को पर्यावरण संरक्षण, ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण और सतत विकास के सिद्धांतों को समझने में मदद की।
जनक दीदी पिछले चार दशकों से पर्यावरण संरक्षण और सामुदायिक विकास के प्रति समर्पित हैं। उनकी यात्रा व्यक्तिगत संघर्ष और सामाजिक प्रतिबद्धता का अनूठा उदाहरण है। 16 वर्ष की आयु में गंभीर हृदय रोग से उबरने के बाद, उन्होंने अपने जीवन को ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त करने का संकल्प लिया। 1992 में रियो डी जेनेरियो में पहली अर्थ समिट में भाग लेने के बाद, उन्होंने यह तय किया कि वे अपने कार्यों के माध्यम से भूमि, जल और वायु को प्रदूषण से बचाएंगी।
1985 में, जनक दीदी ने बरली डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट फॉर वूमेन की स्थापना की, जहां हजारों आदिवासी और ग्रामीण महिलाओं को सौर खाना पकाने, जैविक खेती और अन्य टिकाऊ कौशलों का प्रशिक्षण दिया गया। सेवा निवृत्ति के बाद, उन्होंने जिम्मी मगिलिगन सेंटर पर ध्यान केंद्रित किया, जो पूरी तरह से सौर ऊर्जा और पवन चक्की से संचालित है। यह केंद्र आसपास के घरों को भी बिजली प्रदान करता है और शून्य कचरा, शून्य प्लास्टिक के सिद्धांत पर आधारित है। यहां प्राचीन भारतीय बीजों से रसायन-मुक्त जैविक भोजन तैयार किया जाता है, जल संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाता है। पुराने अखबारों को ईंधन ब्रिकेट में बदला जाता है, जिससे संसाधनों का पुनर्चक्रण होता है।
केंद्र में सौर खाना पकाने, वर्षा जल संचयन और जैविक खेती जैसे टिकाऊ तरीकों का प्रशिक्षण हजारों लोगों, विशेषकर आदिवासी महिलाओं, किसानों और छात्रों को दिया गया है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में पुरुष सौर ऊर्जा से भोजन तैयार कर महिलाओं को परोसते हैं, जो लैंगिक समानता और सतत खान-पान का प्रतीक है। विश्व पर्यावरण दिवस पर आयोजित एक सप्ताह भर चलने वाले संवाद में युवाओं, किसानों और शिक्षण संस्थानों को शामिल किया जाता है, जिसमें वृक्षारोपण, प्लास्टिक उपयोग में कमी और जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाता है।
छात्रों ने इस अनुभव को जीवन बदलने वाला बताया। उन्होंने कहा, “किसी पुस्तक या पाठ्यक्रम से हम यह सब कभी न समझ पाते। जनक दीदी से मिलकर हमें अपने कर्तव्यों का बोध हुआ। उनके जीवन को देखकर हमें स्पष्ट दिशा मिली है।” बायोसाइंस विभाग की प्रमुख डॉ. ऋचा पाठक ने जनक दीदी और केंद्र के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया।
डॉ. जनक पलटा मगिलिगन का कार्य आज के जलवायु संकट के दौर में हमें याद दिलाता है कि सतत विकास एक आदर्श नहीं, बल्कि एक ऐसी वास्तविकता है, जिसे संकल्पित व्यक्ति और समुदाय साकार कर सकते हैं। उनका जीवन और जिम्मी मगिलिगन सेंटर का मिशन हमें प्रेरित करता है कि हम अपने जीवन और संसाधनों के उपयोग को जिम्मेदारी के साथ पुनर्विचार करें।