भारत में इंटरस्टेलर धूमकेतु 3I/ATLAS का अद्भुत अवलोकन
धूमकेतु 3I/ATLAS का अवलोकन
नई दिल्ली: विश्वभर के वैज्ञानिकों ने जिस रहस्यमय इंटरस्टेलर धूमकेतु की खोज में दिलचस्पी दिखाई थी, उसे भारत में देखा गया है। ISRO से जुड़ी फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (PRL) के शोधकर्ताओं ने इसे माउंट आबू से अवलोकित किया। PRL के वैज्ञानिकों ने अपने 1.2-मीटर टेलीस्कोप का उपयोग करते हुए धूमकेतु 3I/ATLAS का विस्तृत अवलोकन किया। यह धूमकेतु अब भीतरी सौर प्रणाली से दूर जा रहा है और यह तीसरा ज्ञात इंटरस्टेलर धूमकेतु है, जिसने हमारे सौर प्रणाली में प्रवेश किया है। इसे जुलाई 2025 में ATLAS सर्वे द्वारा खोजा गया था। यह हाइपरबोलिक पथ पर यात्रा कर रहा है और कभी वापस नहीं आएगा, इसलिए इसका अवलोकन अत्यंत महत्वपूर्ण है.
धूमकेतु 3I/ATLAS का विशेष अवलोकन 12 से 15 नवंबर, 2025 के बीच किया गया। इसमें इमेजिंग और स्पेक्ट्रोस्कोपिक मोड दोनों का उपयोग किया गया। इससे धूमकेतु की संरचना और रासायनिक संघटन के बारे में महत्वपूर्ण डेटा प्राप्त हुआ है। टेलीस्कोप से प्राप्त तस्वीरों को फाल्स कलर में प्रदर्शित किया गया है, जिसमें धूमकेतु के न्यूक्लियस के चारों ओर गैस और धूल का चमकता हुआ घेरा, जिसे कोमा कहा जाता है, लगभग गोल दिखाई देता है.
कोमा तब बनता है जब सूर्य की गर्मी से धूमकेतु के न्यूक्लियस पर जमी बर्फ भाप में बदल जाती है। इस प्रक्रिया को सब्लिमेशन कहा जाता है, जो गैस और धूल को अंतरिक्ष में छोड़ती है। इस अवलोकन ने इंटरस्टेलर वस्तु की गतिविधियों को समझने में सहायता की है.
धूमकेतु 3I/ATLAS वैज्ञानिकों के लिए विशेष है क्योंकि यह किसी अन्य तारे के सिस्टम से आया है। यह 3,500 साल पुरानी बर्फ और असामान्य रासायनिक संरचना के कारण दुर्लभ सबूत प्रस्तुत करता है। इससे हमें यह जानकारी मिलती है कि हमारे सूर्य के बाहर किस प्रकार का पदार्थ बना था। दूरबीन ने धूमकेतु की धूल की पूंछ को भी देखा, जो सूर्य से दूर धूमकेतु के पीछे फैली हुई है.
डीप वाइड-फील्ड और मल्टीबैंड इमेज में इसकी आयन पूंछ भी दिखाई दी। आयन पूंछ वह आयोनाइज्ड गैस होती है, जिसे सौर वायु आगे धकेलती है। PRL टीम ने स्पेक्ट्रल डेटा भी इकट्ठा किया, जिसमें CN, C2 और C3 जैसे मॉलिक्यूलर बैंड शामिल हैं, जो सौर प्रणाली के धूमकेतुओं में भी पाए जाते हैं.
इन एमिशन फीचर्स से धूमकेतु के रासायनिक मेकअप की पहचान करने में मदद मिलती है। शोधकर्ताओं ने गैस रिलीज की दर या 'प्रोडक्शन रेट' की भी गणना की, जो धूमकेतु की गतिविधि को मापती है। माउंट आबू की ऑब्जर्वेटरी गुरुशिखर के पास 1680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जो विशेष रूप से एक्सोप्लेनेट हंटिंग और सौर प्रणाली के अध्ययन जैसे खगोल विज्ञान अनुसंधान के लिए बनाई गई है.