संत प्रेमानंद महाराज पर विवाद: भक्ति और ज्ञान का टकराव
धार्मिक जगत में संत प्रेमानंद महाराज को लेकर चल रहा विवाद गहराता जा रहा है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य के बयान ने संत समाज को दो धड़ों में बांट दिया है। कुछ संत प्रेमानंद को कलियुग का दिव्य संत मानते हैं, जबकि अन्य उनके चमत्कार और आध्यात्मिक ज्ञान पर सवाल उठा रहे हैं। यह विवाद भक्ति और ज्ञान के बीच के संबंधों पर एक महत्वपूर्ण चर्चा को जन्म दे रहा है। जानें इस मुद्दे पर संतों की प्रतिक्रियाएं और उनके विचार।
Aug 27, 2025, 16:34 IST
संत प्रेमानंद महाराज के खिलाफ विवाद
धार्मिक समुदाय में संत प्रेमानंद महाराज को लेकर चल रहा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। हाल ही में जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने एक पॉडकास्ट में यह कहकर हलचल मचा दी कि वे प्रेमानंद महाराज को "चमत्कारी" नहीं मानते। उन्होंने यह भी चुनौती दी कि यदि वे सच में चमत्कारी हैं, तो अपने संस्कृत श्लोकों का हिंदी में अर्थ बताएं। इस बयान ने संत समाज को दो धड़ों में बांट दिया है।
संतों की प्रतिक्रियाएं
वृंदावन और ब्रज के कई संतों ने रामभद्राचार्य की टिप्पणी को अहंकार से प्रेरित बताया है। साधक मधुसूदन दास ने कहा कि “भक्ति का भाषा से कोई संबंध नहीं होता। कोई भी भाषा बोलने वाला जब भक्ति करता है, तो भगवान उसे स्वीकार करते हैं। संस्कृत न जानने से भक्ति पर सवाल नहीं उठाया जा सकता।” वहीं अभिदास महाराज ने कहा कि प्रेमानंद महाराज कलियुग के दिव्य संत हैं, जिन्होंने लाखों युवाओं को सही मार्ग पर लाने का कार्य किया है। ऐसे संत पर टिप्पणी करना अनुचित है। दिनेश फलाहारी ने तो यह तक कहा कि “इतना अहंकार तो रावण में भी नहीं था। प्रेमानंद महाराज का जीवन सादगी से भरा है और उनके पास कोई संपत्ति नहीं है, जबकि रामभद्राचार्य के पास संपत्ति है। प्रेमानंद के पास केवल राधा नाम की शक्ति है।” अनमोल शास्त्री ने प्रेमानंद महाराज को “युवाओं के दिल की धड़कन” बताते हुए कहा कि किसी संत के लिए यह शोभनीय नहीं है कि वह दूसरों को छोटा बताए।
रामभद्राचार्य के बयान पर प्रतिक्रिया
दूसरी ओर, रामभद्राचार्य के बयान के बाद शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रेमानंद महाराज की भक्ति पद्धति पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि शास्त्र और ज्ञान के बिना अध्यात्म अधूरा है। इस विचारधारा के कारण उनका झुकाव रामभद्राचार्य के पक्ष में माना जा रहा है। यह विवाद स्पष्ट करता है कि संत समाज में एकमतता नहीं है। एक पक्ष प्रेमानंद महाराज को “कलियुग का दिव्य संत” मानता है, जबकि दूसरा पक्ष उनके चमत्कार और आध्यात्मिक ज्ञान पर सवाल उठाता है।
भक्ति और ज्ञान का विवाद
भक्ति, ज्ञान और परंपरा को लेकर उपजा यह विवाद इस समय मथुरा-वृंदावन से लेकर काशी तक चर्चा का विषय बना हुआ है। जहाँ प्रेमानंद महाराज युवाओं के बीच लोकप्रियता और साधना की सरल धारा के प्रतीक माने जाते हैं, वहीं विद्वत परंपरा से जुड़े संत इस शैली को अधूरा मानते हैं। संत समाज आज एक बार फिर उसी शाश्वत प्रश्न के सामने खड़ा है— क्या भक्ति केवल ज्ञान और भाषा से सिद्ध होती है, या वह भाव और श्रद्धा में ही पूर्ण है?