शादी में कुंडली मिलान का महत्व और नाड़ी दोष
कुंडली मिलान की प्रक्रिया
शादी से पहले कुंडली मिलान या गुण मिलान की प्रक्रिया को अष्टकूट मिलान भी कहा जाता है। इसमें दोनों पक्षों के गुणों का मूल्यांकन 8 विभिन्न पहलुओं में किया जाता है। इन 8 गुणों को अंक दिए जाते हैं, जो कुल मिलाकर 36 अंक बनाते हैं। सही मिलान के लिए कम से कम 19 अंक प्राप्त करना आवश्यक होता है, लेकिन इसके लिए नाड़ी मिलान भी जरूरी है।
अष्टकूट मिलान के गुण
अष्टकूट मिलान में निम्नलिखित 8 गुणों का मिलान किया जाता है: 1. वर्ण, 2. वश्य, 3. तारा, 4. योनि, 5. राशि, 6. गण, 7. भटूक, और 8. नाड़ी। इसके अतिरिक्त, कुंडली में मंगल दोष और सप्तम भाव से संबंधित अन्य पहलुओं का भी ध्यान रखा जाता है।
नाड़ी का महत्व
नाड़ी तीन प्रकार की होती है:
आद्या नाड़ी, मध्य नाड़ी, और अंत्य नाड़ी।
आद्या नाड़ी में अश्वनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, पू. फाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, और पू. भाद्र शामिल हैं।
मध्य नाड़ी में भरणी, मृगशिरा, पुष्य, उ. फाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पू.षा. घनिष्ठा, और उ. भाद्र आती हैं।
अंत्य नाड़ी में कृतिका, रोहिणी, श्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उ.षा., श्रवण, और रेवती शामिल हैं।
नाड़ी दोष का प्रभाव
यदि वर और कन्या की नाड़ी समान होती है, तो इसे नाड़ी दोष माना जाता है। नाड़ी का भिन्न होना शुभ माना जाता है। नाड़ी मिलान का उद्देश्य संतान के स्वास्थ्य और संबंधों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करना है। सुखी दांपत्य जीवन के लिए पति-पत्नी की नाड़ी अलग होनी चाहिए।
नाड़ी दोष के परिणाम:
गुण मिलान के बिना विवाह करने से नाड़ी दोष उत्पन्न होता है, जिससे दांपत्य जीवन में समस्याएँ आ सकती हैं। यह तलाक तक की स्थिति पैदा कर सकता है और कभी-कभी संतान की कमी का कारण भी बन सकता है।