यशोदा की पुत्री योगमाया: कृष्ण के जन्म की अद्भुत कहानी
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म और योगमाया का रहस्य
भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कथा सभी को ज्ञात है। बचपन से हम कान्हा की लीलाओं के बारे में सुनते आए हैं। जिस दिन भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, उसी दिन गोकुल में यशोदा और नंद के घर योगमाया नाम की कन्या का भी जन्म हुआ।
नंद और वासुदेव ने अपने बच्चों का अदला-बदली किया, जिसके परिणामस्वरूप कंस ने कृष्ण के स्थान पर योगमाया की हत्या का प्रयास किया। आइए जानते हैं यशोदा की बेटी के बारे में।
कृष्ण के साथ यशोदा की बेटी का जन्म हुआ।
भागवत पुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा की जेल में देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र के रूप में हुआ। उसी समय गोकुल में नंद बाबा और यशोदा के घर एक कन्या का जन्म हुआ। कृष्ण के जन्म के बाद, वासुदेव जी ने दिव्य आदेश के अनुसार नवजात कृष्ण को यमुनाजी पार करके गोकुल ले जाने का निर्णय लिया। उन्होंने यशोदा की नवजात पुत्री (जिसका नाम एकांश या योगमाया था) को उठाया और कृष्ण की जगह रख दिया। फिर वह कन्या को लेकर वापस मथुरा की जेल में लौट आए।
जैसे ही कंस को यह सूचना मिली कि देवकी का आठवां संतान जन्मा है, वह उसे मारने के लिए दौड़ा। लेकिन जब उसने उस कन्या को जमीन पर पटका, तो वह कन्या कंस के हाथ से छूटकर आकाश में देवी के रूप में प्रकट हो गईं और बोलीं - 'अरे मूर्ख! तुझे मारने वाला तो जन्म ले चुका है और किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंच गया है।' इसके बाद यह कन्या विंध्य पर्वत पर जाकर 'विंध्यवासिनी देवी' के रूप में पूजी जाने लगी।
योगमाया को भगवान विष्णु की मायाशक्ति माना जाता है। देवी को कात्यायनी, चामुंडा, भवानी, और विंध्यवासिनी नामों से भी जाना जाता है। नवरात्रि और अन्य विशेष पर्वों पर इनकी पूजा का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि देवताओं ने माता से कहा था कि देवी, आपके धरती पर कार्य पूरा हो चुका है, अब आप देवलोक चली जाएं। तब देवी ने कहा था कि मैं धरती पर भिन्न-भिन्न रूप में रहूंगी, जो भक्त मेरा जैसा ध्यान करेगा, मैं उसी रूप में दर्शन दूंगी। तब देवताओं ने देवी का विंध्याचल में एक शक्तिपीठ बनाकर उनकी स्तूति की और देवी वहीं विराजमान हो गई।