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मंगल दोष के निवारण के लिए हनुमानजी की पूजा के उपाय

मंगल दोष एक ज्योतिषीय स्थिति है जो विवाह में रुकावट का कारण बन सकती है। इस लेख में, हम जानेंगे कि कैसे हनुमानजी की पूजा और विशेष उपायों के माध्यम से इस दोष का निवारण किया जा सकता है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार, मांगलिक व्यक्ति का विवाह मांगलिक लड़की से होना चाहिए, लेकिन इसके अलावा भी कई उपाय हैं जो विवाह में आ रही बाधाओं को दूर कर सकते हैं। हनुमान चालीसा का पाठ और विशेष दान के माध्यम से मंगल ग्रह की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
 

मंगल दोष और हनुमानजी की कृपा

मंगलवार का दिन विशेष रूप से हनुमानजी को समर्पित है, जो अपने भक्तों पर अपार कृपा बरसाते हैं। यदि किसी के प्रेम विवाह में रुकावट आ रही है, तो यह संभव है कि उनकी कुंडली में मंगल दोष हो। ज्योतिष के अनुसार, यह दोष तब उत्पन्न होता है जब मंगल ग्रह किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के पहले, चौथे, सातवें, आठवें या बारहवें भाव में स्थित होता है। इसके परिणामस्वरूप विवाह में देरी और वैवाहिक जीवन में तनाव जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।


मांगलिक विवाह के उपाय

ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश पांडेय के अनुसार, मांगलिक व्यक्ति का विवाह भी मांगलिक लड़की से होना चाहिए। हालांकि, इसका यह अर्थ नहीं है कि मांगलिक दोष वाले व्यक्ति का विवाह सुखद नहीं हो सकता। मंगल दोष के कारण विवाह में विलंब या वैवाहिक जीवन में कलह हो सकती है। इस समस्या के समाधान के लिए मंगलवार को हनुमानजी की पूजा करना आवश्यक है।


हनुमानजी की पूजा विधि

यदि विवाह या प्रेम विवाह में बाधा आ रही है, तो मंगलवार को हनुमानजी की विधिपूर्वक पूजा करें और हनुमान चालीसा का पाठ करें। सिंदूर और चमेली के तेल का चोला चढ़ाना चाहिए। इसके साथ ही, लाल मसूर की दाल और गुड़ का दान करना भी लाभकारी है। लाल रंग की गाय को गुड़-रोटी खिलाने से मंगल ग्रह की कृपा प्राप्त होती है। मंगल दोष के निवारण के लिए कुंभ विवाह या अर्क विवाह कराना भी एक प्रभावी उपाय है। बड़े भाई या बहन की सेवा और सम्मान करने से भी मंगल ग्रह शुभ फल देता है। पूजा के बाद हनुमानजी की आरती करना न भूलें।


हनुमानजी की आरती

हनुमानजी की आरती (Hanuman Ji Ki Aarti)


आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके।।
अंजनि पुत्र महाबलदायी। संतान के प्रभु सदा सहाई।
दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुध लाए।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।
लंका जारी असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आणि संजीवन प्राण उबारे।
पैठी पताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े।
बाएं भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे।
सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे।
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।
लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई।
जो हनुमानजी की आरती गावै। बसी बैकुंठ परमपद पावै।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।