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भारत में कुष्ठ रोग पर नियंत्रण: सफलता की कहानी और भविष्य की चुनौतियाँ

भारत ने कुष्ठ रोग पर नियंत्रण में उल्लेखनीय प्रगति की है, जिसमें 1951 से अब तक के प्रयासों का विवरण है। इस लेख में जानें कि कैसे सरकार और NGOs ने मिलकर इस बीमारी के खिलाफ जंग लड़ी है। साथ ही, भविष्य की योजनाओं और चुनौतियों पर भी चर्चा की गई है। क्या भारत 2030 तक कुष्ठ रोग को पूरी तरह समाप्त कर सकेगा? जानने के लिए पूरा लेख पढ़ें।
 

कुष्ठ रोग पर नियंत्रण की दिशा में भारत की प्रगति

कुष्ठ रोग पर काबू

कुष्ठ रोग, जिसे हंसन रोग भी कहा जाता है, माइकोबैक्टीरियम लेप्रे बैक्टीरिया के संक्रमण से फैलता है। यह रोग शरीर पर धब्बे छोड़ता है और संक्रमित क्षेत्र में संवेदनहीनता पैदा कर देता है। इस बीमारी से प्रभावित व्यक्ति के हाथ, पैर और चेहरे में बदलाव आ सकते हैं, और आंखों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

संक्रमण की रोकथाम के उपाय

1951 की जनगणना के अनुसार, कुष्ठ रोग एक गंभीर समस्या थी, जिसमें 13,74,000 लोग संक्रमित थे। इसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य समस्या मानते हुए, सरकार ने इसके नियंत्रण के लिए कदम उठाए। 1954-55 में राष्ट्रीय कुष्ठ नियंत्रण कार्यक्रम (NLCP) की शुरुआत की गई, जिसमें संक्रमित व्यक्तियों का इलाज किया गया। 1969-74 के दौरान इस कार्यक्रम को और विस्तारित किया गया।

NGOs की भूमिका

1983 में NGOs की भागीदारी को बढ़ावा दिया गया, जिसके तहत SET योजना शुरू की गई। इस योजना के माध्यम से कुष्ठ रोगियों की पहचान और उपचार को बढ़ावा दिया गया। हर 25,000 की जनसंख्या पर पैरामेडिकल कर्मचारी नियुक्त किए गए, जिससे जागरूकता बढ़ी।

सर्वेक्षण के माध्यम से लोगों को संक्रमण के प्रारंभिक लक्षणों के बारे में जानकारी दी गई, ताकि समय पर इलाज किया जा सके। 1982-83 में मल्टी ड्रग थेरेपी (MDT) की शुरुआत की गई, जिसे WHO द्वारा मान्यता प्राप्त थी।

संक्रमण के आंकड़ों में कमी

1981 में कुष्ठ रोग की दर 57.2 प्रति 10,000 थी, जो 2004 तक घटकर 2.4 प्रति 10,000 रह गई। नए मरीजों में गंभीर विकृति की दर भी 20% से घटकर 1.5% हो गई। विश्व बैंक और विभिन्न संगठनों के सहयोग से कुष्ठ रोग उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त किया गया।

भविष्य की चुनौतियाँ

राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम (NLEP) के तहत 2023-2027 के लिए एक रणनीतिक योजना बनाई गई है, जिसका उद्देश्य 2030 तक कुष्ठ रोग के प्रसार को पूरी तरह रोकना है। इसमें निगरानी, डिजिटलीकरण, वैक्सीनेशन और जागरूकता अभियानों पर जोर दिया जाएगा।