भगवान परशुराम की मां के सिर काटने की रहस्यमयी कथा
भगवान परशुराम ने अपनी मां का सिर क्यों काटा?
भगवान परशुराम ने काटा था अपनी मां का सिर
भगवान परशुराम की कहानी: भगवान परशुराम, जिन्हें भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है, एक महान योद्धा हैं। उनका स्वभाव शांत है, लेकिन जब वे क्रोधित होते हैं, तो उनका क्रोध विनाशकारी होता है। उनके हाथ में फरसा और कंधे पर धनुष है। वे एकमात्र ऐसे अवतार हैं जो अमर माने जाते हैं और आज भी धरती पर विद्यमान हैं।
भगवान परशुराम ने अपनी मां का सिर काटने की एक चौंकाने वाली घटना को अंजाम दिया। यह घटना उनके पिता के आदेश पर हुई थी। सुनने में यह क्रूरता लग सकती है, लेकिन इसके पीछे एक गहरी कहानी छिपी हुई है। आइए जानते हैं इस रहस्यमयी कथा के बारे में।
सतीत्व और तप की महत्ता
भगवान परशुराम की माता का नाम रेणुका था और उनके पिता महर्षि जमदग्नि थे। दोनों तपस्वी थे। माता रेणुका जल लाने के लिए कच्चे मिट्टी के घड़े का उपयोग करती थीं, जिससे उनके सतीत्व और तप की शक्ति से पानी में घड़ा गलता नहीं था। एक दिन, जब माता रेणुका नदी गईं, वहां गंधर्वराज चित्ररथ अपनी अप्सराओं के साथ थे। उन्हें देखकर माता का मन क्षण भर के लिए विचलित हो गया, जिससे उनकी सिद्धियां छिन गईं।
जब माता खाली हाथ आश्रम लौटीं, तो महर्षि जमदग्नि ने अपनी दिव्य दृष्टि से सब कुछ देख लिया और क्रोधित हो गए।
पिता का आदेश और परशुराम का निर्णय
महर्षि ने इसे मर्यादा का उल्लंघन मानते हुए अपने पुत्रों को माता का वध करने का आदेश दिया। परशुराम के चारों भाई इस आदेश को मानने से डर गए। पिता के आदेश की अवहेलना करने पर उन्हें पत्थर बनने का श्राप दिया गया। अंततः भगवान परशुराम ने पिता का आदेश मानते हुए फरसा उठाया।
भगवान परशुराम का वरदान
भगवान परशुराम ने अपनी मां का सिर काट दिया, जिससे आश्रम में सन्नाटा छा गया। लेकिन उन्हें पता था कि उनके पिता मृत्यु को भी मात देने की शक्ति रखते हैं। महर्षि का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने परशुराम से वरदान मांगने को कहा। भगवान परशुराम ने चतुराई से कहा कि उन्हें अपनी मां के लिए जीवनदान चाहिए। इसके बाद ऋषि ने अभिमंत्रित जल छिड़का और माता रेणुका जीवित हो गईं।
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