नवरात्रि में जौ के अंकुर: शुभ और अशुभ संकेत
जौ के अंकुर और उनके संकेत
नवरात्रि के दौरान बोए गए जौ के अंकुर शुभ और अशुभ संकेतों का संकेत देते हैं। हरे और सफेद अंकुर समृद्धि और सफलता का प्रतीक होते हैं।
नवरात्रि के पहले दिन जौ को कलश स्थापना के साथ बोया जाता है। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा की पूजा के दौरान अंकुरित होना आने वाले समय के शुभ और अशुभ संकेतों को दर्शाता है और आध्यात्मिक साधना की सफलता को भी इंगित करता है।
यदि जौ के अंकुर धुएं जैसे रंग के होते हैं, तो इसे परिवार में असहमति और कलह का संकेत माना जाता है। यह संकेत रिश्तों में तनाव और विवाद को बढ़ा सकता है।
काले जौ के अंकुर शुभ नहीं माने जाते। ये पूरे वर्ष गरीबी, वित्तीय संकट और कमी का संकेत देते हैं। ऐसे समय में परिवार को धैर्य और सावधानी से आगे बढ़ना चाहिए।
यदि जौ अंकुरित नहीं होता है, तो इसे अत्यंत अशुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह कार्यों में निरंतर बाधाओं और परिवार में अप्रत्याशित संकट या मृत्यु की संभावना को दर्शाता है।
यदि जौ के अंकुर लाल या रक्तवर्णी होते हैं, तो इसे बीमारी, रोग और दुश्मनों के भय का संकेत माना जाता है। ऐसे समय में साधक को देवी दुर्गा से सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
हरे अंकुर सबसे शुभ माने जाते हैं। ये धन, भोजन, समृद्धि और कल्याण का प्रतीक होते हैं। हरे अंकुरों का विकास देवी दुर्गा के आशीर्वाद का स्पष्ट संकेत है और यह दर्शाता है कि साधना पूरी तरह सफल रही है।
सफेद जौ के अंकुर अत्यंत शुभ माने जाते हैं। ये साधक की इच्छाओं की पूर्ति, आध्यात्मिक प्रगति और भगवान की विशेष कृपा का संकेत देते हैं। सफेद अंकुर शांति, खुशी और आने वाले वर्ष में समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं।
यदि अंकुर आधे हरे और आधे पीले होते हैं, तो यह मिश्रित संकेत है। प्रारंभ में कार्यों में सफलता मिलेगी, लेकिन बाद में हानि हो सकती है। इसलिए ऐसे समय में निर्णय लेते समय सावधानी और धैर्य रखना महत्वपूर्ण है।
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