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देव दीपावली 2025: पितरों के लिए दीप जलाने का महत्व

देव दीपावली 2025 का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह दिन पितरों के प्रति श्रद्धा और आभार व्यक्त करने का अवसर है। इस दिन गंगा स्नान, दान और दीपदान का महत्व है, जो न केवल देवी-देवताओं को प्रसन्न करता है, बल्कि पितरों की आत्मा को भी शांति प्रदान करता है। जानें कैसे इस दिन अपने पितरों के नाम दीप जलाकर आप उनके आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं और पितृ ऋण से मुक्ति पा सकते हैं।
 

देव दीपावली का महत्व

देव दीपावली 2025Image Credit source: PTI


देव दीपावली के उपाय: कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाई जाने वाली देव दीपावली (Dev Deepawali) का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह पर्व देवताओं के पृथ्वी पर आगमन और उनकी प्रसन्नता का प्रतीक है। इस दिन गंगा स्नान, दान और दीपदान (Deepdaan) का विधान है, जिससे न केवल देवी-देवता प्रसन्न होते हैं, बल्कि पितरों की आत्मा को भी शांति मिलती है। माना जाता है कि यह पावन तिथि आपको पितृ ऋण से मुक्ति दिलाने और घर में सुख-समृद्धि का वास सुनिश्चित करने का सुनहरा अवसर प्रदान करती है। इस देव दीपावली पर, अपने पितरों के नाम एक दीप जलाकर आप उनके आशीर्वाद के पात्र बन सकते हैं।


पितृ शांति के लिए विशेष पूजा

देव दिवाली के पवित्र अवसर पर किया जाने वाला पितृ दीपदान अत्यंत श्रद्धा और आस्था से जुड़ा कर्म है। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा की रात गंगा या किसी पवित्र नदी के तट पर पितरों के नाम से दीप प्रवाहित करने से उनकी आत्मा को शांति और तृप्ति प्राप्त होती है। यह दीप उनके लिए प्रकाश का माध्यम बनता है, जिससे वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन किया गया दीपदान व्यक्ति को पितृ ऋण से मुक्त करता है और उसके जीवन में सुख, समृद्धि तथा संतुलन लाता है। यह परंपरा हमारे पूर्वजों के प्रति श्रद्धा, स्मरण और कृतज्ञता की दिव्य अभिव्यक्ति मानी जाती है।


देव दिवाली के दिन पितृ पूजन की विधि

  • सुबह गंगा स्नान कर स्वयं को पवित्र किया जाता है।
  • इसके बाद भगवान विष्णु, भगवान शिव और देवी गंगा की श्रद्धापूर्वक पूजा की जाती है।
  • शाम में घर, मंदिर या नदी तट पर घी या तिल के तेल के दीपक जलाए जाते हैं।
  • दीपकों को पंक्तियों में सजाया जाता है, जिससे चारों ओर दिव्य आभा फैलती है।
  • कुछ दीपक देवताओं के नाम से जलाए जाते हैं और कुछ पितरों के नाम से प्रवाहित किए जाते हैं।
  • दीप प्रवाह के समय पितरों की शांति, तृप्ति और आशीर्वाद की कामना की जाती है।
  • आखिर में पितरों से क्षमा और कृपा की प्रार्थना कर दीपोत्सव का समापन किया जाता है।