तुलसी विवाह: भगवान शालिग्राम और माता तुलसी का दिव्य मिलन
तुलसी विवाह का महत्व
तुलसी विवाह 2025
हिंदू धर्म में तुलसी और भगवान विष्णु की कथा को अत्यधिक पवित्र माना जाता है। यह कथा भक्ति और प्रेम की गहराई को दर्शाती है। तुलसी विवाह का पर्व माता तुलसी (जो लक्ष्मी स्वरूपा हैं) और भगवान विष्णु (जो शालिग्राम रूप में हैं) के पुनर्मिलन का प्रतीक है। यह कथा यह भी बताती है कि भगवान अपने भक्तों के प्रति कितने समर्पित होते हैं कि श्राप को भी आशीर्वाद में बदल देते हैं। तुलसी और विष्णु का यह संबंध सिखाता है कि सच्ची भक्ति और प्रेम सभी कठिनाइयों को पार कर सकते हैं।
पुराणों के अनुसार, तुलसी का पूर्वजन्म वृंदा नामक एक पवित्र स्त्री के रूप में था। वह जलंधर नामक दैत्यराज की पत्नी थीं, जो भगवान विष्णु के वरदान से अपराजित थे। जलंधर की भक्ति और वृंदा की पतिव्रता शक्ति के कारण देवता उन्हें पराजित नहीं कर पा रहे थे। जब देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी, तो उन्होंने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के सामने प्रकट हुए। जब वृंदा को यह पता चला कि उनके साथ छल हुआ है, तो उन्होंने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दिया।
इस श्राप के परिणामस्वरूप भगवान विष्णु शालिग्राम पत्थर के रूप में प्रकट हुए। हालांकि, उन्होंने वृंदा की भक्ति को सम्मानित करते हुए उन्हें वरदान दिया कि वह धरती पर तुलसी के रूप में जन्म लेंगी और उनका शालिग्राम रूप हमेशा उनके साथ पूजा जाएगा। वृंदा के शरीर से गंडकी नदी का उद्भव हुआ, जो नेपाल में स्थित है, और जहां से आज भी शालिग्राम पत्थर प्राप्त होता है। इसलिए आज भी तुलसी-दल से शालिग्राम भगवान की पूजा की जाती है।
तुलसी का पौधा किसका अवतार है?
धर्मग्रंथों में तुलसी को माता लक्ष्मी का अवतार माना गया है। लक्ष्मी जी सौभाग्य और समृद्धि की देवी हैं, और तुलसी भी पवित्रता और सात्त्विकता का प्रतीक है। भगवान विष्णु के प्रति तुलसी की अटूट भक्ति के कारण उन्हें लक्ष्मी स्वरूपा कहा गया है। कहा जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है, वहां लक्ष्मी जी का वास होता है। तुलसी-दल के बिना विष्णु या श्रीकृष्ण की पूजा अधूरी मानी जाती है, क्योंकि यह ईश्वर के प्रति निष्ठा और प्रेम का प्रतीक है। तुलसी का पूजन न केवल धार्मिक दृष्टि से शुभ है, बल्कि यह घर में शांति, सौभाग्य और दिव्य ऊर्जा का प्रवाह भी स्थिर करता है।