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तिरुपति बालाजी मंदिर: 200 साल पुरानी प्रसाद परंपरा और रहस्यमय तथ्य

तिरुपति बालाजी मंदिर, जो आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है, अपनी 200 साल पुरानी प्रसाद परंपरा और रहस्यमय तथ्यों के लिए प्रसिद्ध है। यहां भगवान वेंकटेश्वर की पूजा होती है, और श्रद्धालु दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं। हाल ही में, मंदिर में घी की आपूर्ति को लेकर चर्चा हुई है। इस लेख में हम तिरुपति मंदिर के रहस्यों और प्रसाद की परंपरा के बारे में विस्तार से जानेंगे।
 

तिरुपति बालाजी मंदिर का परिचय

तिरुपति बालाजी मंदिर

तिरुपति बालाजी मंदिर: यह मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुमाला की पहाड़ियों पर स्थित है, जहां भक्ति और संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। पिछले वर्ष यहां के प्रसाद लड्डू में जानवरों की चर्बी का मामला सामने आया था, और अब यह मंदिर फिर से चर्चा में है। हाल ही में पता चला है कि उत्तराखंड की एक डेयरी ने तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) को पिछले पांच वर्षों में 68 किलो घी सप्लाई किया है, जिसकी लागत लगभग 250 करोड़ रुपये है।

तिरुपति बालाजी मंदिर में श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या देखी जाती है। यहां भगवान वेंकटेश्वर की पूजा होती है, जो भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से लोग यहां दर्शन और आशीर्वाद के लिए आते हैं। इस मंदिर का प्रसाद बहुत प्रसिद्ध है और इसकी परंपरा भी पुरानी है। आइए जानते हैं इस मंदिर के कुछ रहस्यमय तथ्य।


200 साल पुरानी प्रसाद परंपरा

तिरुपति में प्रसाद देने की परंपरा 200 साल पुरानी

तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रसाद देने की परंपरा 200 साल से अधिक पुरानी है। कहा जाता है कि 1803 में यहां बूंदी को प्रसाद के रूप में बांटने की शुरुआत हुई थी। यह परंपरा तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम द्वारा शुरू की गई थी। हालांकि, 1940 में इस परंपरा में बदलाव किया गया और बूंदी के स्थान पर श्रद्धालुओं को लड्डू का प्रसाद दिया जाने लगा।

1950 में टीटीडी ने यह तय किया कि प्रसाद में उपयोग होने वाली सामग्रियों की मात्रा क्या होगी। 2001 में इस परंपरा में आखिरी बार बदलाव किया गया था, जो आज भी लागू है।


तिरुपति बालाजी मंदिर के रहस्य

तिरुपति बालाजी मंदिर के रहस्य

इस मंदिर के कई रहस्य हैं जो लोगों को आश्चर्यचकित कर सकते हैं। कहा जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर के बाल असली हैं और हमेशा मुलायम रहते हैं। मान्यता है कि भगवान स्वयं यहां विराजमान हैं। गर्भगृह में प्रवेश करते ही भगवान की प्रतिमा मध्य में दिखाई देती है।

भगवान के ह्रदय में मां लक्ष्मी की आकृति

गर्भगृह से बाहर आने पर वही प्रतिमा दाहिनी ओर दिखती है। जब भगवान को स्नान कराने के बाद चंदन का लेप लगाया जाता है और फिर हटाया जाता है, तो भगवान के ह्रदय में मां लक्ष्मी की आकृति देखी जाती है। यहां भगवान की प्रतिमा को स्त्री और पुरुष दोनों के कपड़े पहनाए जाते हैं, क्योंकि मान्यता है कि भगवान के इस रूप में मां लक्ष्मी भी समाहित हैं।

इस मंदिर में एक दीपक हमेशा जलता रहता है, जो बिना तेल और घी के जलता है। कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति यहां प्रतिमा के पास कान लगाकर सुनता है, तो उसे समुद्र की लहरों की आवाज सुनाई देती है।