जैन धर्म में धनतेरस: आध्यात्मिक समृद्धि का पर्व
जैन धनतेरस 2025
जैन धनतेरस 2025
जैन धर्म में धनतेरस: धनतेरस का पर्व जैन धर्म में केवल भौतिक समृद्धि का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक समृद्धि, दान और धार्मिक आचरण की भी याद दिलाता है। इस दिन जैन समुदाय केवल धन, सोने और चांदी की पूजा नहीं करता, बल्कि धार्मिक ग्रंथों, ज्ञान और साधना के साधनों की भी पूजा की जाती है। यह पूजा घर और व्यवसाय में संपत्ति की सुरक्षा, व्यापार में वृद्धि और परिवार में सुख-शांति लाने के लिए की जाती है। इस वर्ष धनतेरस 18 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
इस दिन दान और परोपकार का विशेष महत्व होता है। गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और अन्य आवश्यक वस्तुएं दान करना पुण्य माना जाता है। धनतेरस हमें यह सिखाता है कि धन का सही उपयोग और त्याग जीवन में सच्ची समृद्धि लाते हैं।
जैन धर्म में दान और परोपकार का महत्व
धनतेरस के दिन जैन धर्म में दान और परोपकार का विशेष महत्व है। इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, पैसे और अन्य आवश्यक वस्तुएं दान करना शुभ माना जाता है। जैन धर्म के अनुसार, दान केवल आर्थिक मदद नहीं है, बल्कि यह कर्म और पुण्य का माध्यम भी है, जो जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और मानसिक संतोष लाता है। धनतेरस पर किया गया दान परिवार में खुशहाली, सुख-शांति और सामंजस्य बढ़ाने में मदद करता है। यह परंपरा हमें सिखाती है कि धन का सही उपयोग और दूसरों की मदद करना जीवन में सच्ची समृद्धि लाता है।
भगवान महावीर से जुड़ी परंपरा
धनतेरस का दिन जैन धर्म में भगवान महावीर से भी जुड़ा हुआ है। जैन परंपरा के अनुसार, इस दिन भगवान महावीर ने अपने जीवन में संपत्ति और भौतिक इच्छाओं का त्याग कर तप, साधना और आत्म-निर्माण का मार्ग अपनाया। उनके इस मार्ग ने जैन अनुयायियों को सच्चे जीवन मूल्यों, संयम और आत्मिक विकास की प्रेरणा दी है। इसलिए धनतेरस पर केवल भौतिक धन, सोना या चांदी की पूजा नहीं की जाती, बल्कि धार्मिक ग्रंथों, ज्ञान और साधना के साधनों का भी पूजन किया जाता है। यह परंपरा याद दिलाती है कि धन का सही उपयोग और आध्यात्मिक साधना जीवन में संतुलन और सच्ची समृद्धि लाती है।