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चतुर्दशी श्राद्ध 2025: पितरों के श्राद्ध का महत्व और शुभ मुहूर्त

चतुर्दशी श्राद्ध 2025 के अवसर पर जानें कि किस पितर का श्राद्ध करना चाहिए और इसके लिए कौन से शुभ मुहूर्त हैं। पितृ पक्ष के इस महत्वपूर्ण दिन पर श्राद्ध का विशेष महत्व है। गरुड़ पुराण के अनुसार, अकाल मृत्यु वाले पितरों का श्राद्ध इस दिन किया जाता है। साथ ही, राहुकाल के समय का ध्यान रखना भी आवश्यक है। इस लेख में आपको श्राद्ध के विधि-विधान और समय की जानकारी मिलेगी।
 

चतुर्दशी श्राद्ध 2025

चतुर्दशी श्राद्ध 2025

चतुर्दशी श्राद्ध 2025: वर्तमान में पितृ पक्ष का समय चल रहा है, जो पूरी तरह से पूर्वजों को समर्पित है। यह श्राद्ध पक्ष 7 सितंबर 2025 से आरंभ हुआ और 2 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या के साथ समाप्त होगा। पितृ पक्ष की प्रत्येक तिथि किसी न किसी पूर्वज के श्राद्ध के लिए निर्धारित होती है। आज, 20 सितंबर को चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध किया जाएगा, जो इस समय विशेष महत्व रखता है। आइए जानते हैं कि इस दिन किस पितर का श्राद्ध करना चाहिए और कौन सा शुभ मुहूर्त है।

चतुर्दशी पर किसका श्राद्ध करें?

गरुड़ पुराण के अनुसार, चतुर्दशी तिथि पर उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो, जैसे कि दुर्घटना, हत्या या आत्महत्या। वहीं, जिनकी स्वाभाविक मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध इस दिन नहीं किया जाता। चतुर्दशी श्राद्ध से संतुष्ट होकर पितर अपने वंशजों को सुख, समृद्धि, यश और दीर्घायु का आशीर्वाद देते हैं।

राहुकाल का ध्यान रखें

वैदिक पंचांग के अनुसार, 20 सितंबर को राहुकाल सुबह 9:11 से 10:43 बजे तक रहेगा। इस समय श्राद्ध करने से बचना चाहिए। चतुर्दशी श्राद्ध को घट चतुर्दशी, घायल चतुर्दशी और चौदस श्राद्ध भी कहा जाता है।

  • कुतुप मुहूर्त: सुबह 11:50 से 12:39 बजे तक।
  • रौहिण मुहूर्त: 12:39 से 1:28 बजे तक।
  • अपराह्न काल: 1:28 से 3:54 बजे तक।
  • अभिजीत मुहूर्त: 11:32 से 12:22 बजे तक।

अकाल मृत्यु वालों का श्राद्ध

अकाल मृत्यु वाले पितरों का श्राद्ध और पिंडदान गया जी स्थित प्रेतशिला पर्वत पर करने का विधान है। प्रेतशिला पर्वत के शिखर पर एक वेदी है, जिसे प्रेतशिला वेदी कहा जाता है। अकाल मृत्यु वाले पितरों का श्राद्ध और पिंडदान यहीं किया जाता है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रेतशिला वेदी पर श्राद्ध और पिंडदान करने से अकाल मृत्यु वाले पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। इनका पिंडदान सत्तू से किया जाता है। प्रेतशिला वेदी पर सूर्यास्त के बाद ठहरने की मनाही है, इसलिए यहां सूर्यास्त के बाद श्राद्ध और पिंडदान नहीं किया जाता है.