गोपाष्टमी: भगवान श्रीकृष्ण की कृपा का पर्व
गोपाष्टमी कथा
गोपाष्टमी कथा
गोपाष्टमी का महत्व: गोपाष्टमी का त्योहार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस दिन गायों, बछड़ों और भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। यह पर्व गौ माता और श्रीकृष्ण के प्रेम का प्रतीक है। इस वर्ष गोपाष्टमी 30 अक्टूबर 2025 को है। मथुरा, वृंदावन, गोकुल और ब्रज में इस दिन विशेष पूजा, व्रत और कथा का आयोजन किया जाएगा। आइए, गोपाष्टमी की कथा और इसके महत्व को समझते हैं।
गोपाष्टमी की कहानी
गोपाष्टमी का पर्व दो प्रमुख घटनाओं के कारण मनाया जाता है। पहली घटना तब की है जब भगवान कृष्ण पहली बार गाय चराने निकले थे, और दूसरी घटना गोवर्धन पूजा के बाद की है, जब इंद्रदेव ने भगवान कृष्ण की हार स्वीकार की थी। आइए, इन दोनों घटनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
गोपाष्टमी की कथा
स्कंद पुराण और भागवत पुराण के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने छठे वर्ष में प्रवेश किया, तो उन्होंने माता यशोदा से गाय चराने की इच्छा व्यक्त की। यशोदा ने कहा कि पहले नंद बाबा से अनुमति लेनी होगी। जब कृष्ण ने नंद बाबा से अनुमति मांगी, तो उन्होंने कहा कि तुम छोटे हो, पहले बछड़ों को चराओ। लेकिन कृष्ण ने जिद की।
नंद बाबा ने शांडिल्य ऋषि से शुभ मुहूर्त के बारे में पूछा, और ऋषि ने बताया कि कार्तिक शुक्ल अष्टमी का दिन सबसे अच्छा है। उसी दिन नंद बाबा की अनुमति मिलने पर श्रीकृष्ण ने पहली बार गायों को चराया। इस दिन से गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा। धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन से कृष्ण को ‘गोपाल’ कहा जाने लगा।
एक अन्य कथा के अनुसार, जब ब्रजवासी इंद्र देव की पूजा कर रहे थे, तब कृष्ण ने उन्हें बताया कि वर्षा का कारण इंद्र नहीं, बल्कि गोवर्धन पर्वत है। जब ब्रजवासियों ने इंद्र की जगह गोवर्धन की पूजा शुरू की, तो इंद्र ने क्रोधित होकर बारिश शुरू कर दी। भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर ब्रजवासियों और पशुओं की रक्षा की। जब इंद्र ने अपनी गलती स्वीकार की, तो उन्होंने भगवान कृष्ण का अभिषेक किया। तभी से यह दिन गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाने लगा।