गीता उपदेश: व्यक्तित्व निर्माण में तीन गुणों की भूमिका
गीता उपदेश
गीता उपदेश
गीता उपदेश: श्रीमद्भगवद्गीता हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया था। गीता में बताया गया है कि इस संसार की रचना मुख्यतः तीन गुणों से होती है। मानव का शरीर और चेतना भी इन गुणों से प्रभावित होती है। शरीर वात, पित्त और कफ से संबंधित है, जबकि चेतना सत्व, रज और तम गुणों से जुड़ी है। ये गुण हर व्यक्ति में विभिन्न अनुपात में मौजूद होते हैं।
ये तीन गुण व्यक्ति के व्यक्तित्व, स्वभाव और कार्यों का निर्माण करते हैं। लेकिन, इनमें से कौन सा गुण सबसे श्रेष्ठ है, यह जानने के लिए हमें इन गुणों के बारे में समझना होगा। आइए, सत्व, रज और तम गुणों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
सत्व गुण
सत्व गुण को सत्य और अच्छाई का गुण माना जाता है। यह गुण आध्यात्मिक व्यक्तियों में पाया जाता है। यह खुशी, शांति, कल्याण, स्वतंत्रता, प्रेम, करुणा, संतुलन, ध्यान, आत्म-नियंत्रण, संतोष, कृतज्ञता, निर्भीकता और निस्वार्थता से संबंधित है। इस गुण को ज्ञान, सात्विक भोजन और सकारात्मक जीवनशैली के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है।
रज गुण
रज गुण को गति और परिवर्तन का गुण कहा जाता है। यह लालसा, लगाव और आकर्षण से जुड़ा होता है। रज गुण में क्रोध, चिंता, भय, चिड़चिड़ापन, बेचैनी, तनाव और अराजकता शामिल हैं। इसे कम करने के लिए राजसिक भोजन से बचना चाहिए और भौतिक सुखों का त्याग करना चाहिए।
तम गुण
तम गुण अंधकार और निष्क्रियता से संबंधित है। यह गुण अज्ञानता के कारण उत्पन्न होता है। इसमें आलस्य, घृणा, संदेह, अपराधबोध, शर्म, लत, उदासीनता, भ्रम, शोक और निर्भरता शामिल हैं। इसे कम करने के लिए तामसिक भोजन से बचना चाहिए और अधिक सोने, अधिक खाने और निष्क्रियता से दूर रहना चाहिए।
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