कैलाश मानसरोवर यात्रा का सफल समापन, 237 श्रद्धालुओं ने लिया भाग
कैलाश मानसरोवर यात्रा का आयोजन
कोविड-19 महामारी के चलते पांच साल के अंतराल के बाद, 30 जून को कैलाश मानसरोवर यात्रा का आयोजन हुआ, जिसमें 237 श्रद्धालुओं ने भाग लिया। इन श्रद्धालुओं को 50-50 लोगों की पांच टीमों में बांटा गया था।
सिक्किम में नाथू ला दर्रे के रास्ते से 48 तीर्थयात्रियों के अंतिम जत्थे की वापसी के साथ ही यह यात्रा संपन्न हो गई। अधिकारियों ने सोमवार को इस बात की जानकारी दी।
यात्रा का समापन समारोह
सिक्किम पर्यटन विकास निगम (एसटीडीसी) के अधिकारियों ने रविवार को 48 तीर्थयात्रियों का स्वागत किया और कैलाश मानसरोवर यात्रा 2025 के सफल समापन पर एक समारोह का आयोजन किया। एसटीडीसी के अध्यक्ष लुकेन्द्र रसैली ने कहा कि अधिकारियों के समर्पण के कारण लगभग 500 तीर्थयात्रियों की यात्रा सुगम हो सकी।
उन्होंने बताया कि अर्धसैनिक बलों और अन्य एजेंसियों के सहयोग से तीर्थयात्रियों के लिए विभिन्न प्रबंध किए गए थे, जिससे यात्रा निर्बाध रूप से संपन्न हो सकी।
कैलाश पर्वत का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास माना जाता है, इसलिए कैलाश मानसरोवर यात्रा धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। हर साल बड़ी संख्या में लोग इस तीर्थयात्रा पर जाते हैं।
इस यात्रा में श्रद्धालुओं को 19,500 फुट की ऊंचाई पर चढ़ाई करनी होती है, जिसमें कठिन मौसम और ऊबड़-खाबड़ इलाके शामिल होते हैं, जो शारीरिक रूप से अस्वस्थ लोगों के लिए खतरनाक हो सकता है।
श्रद्धालुओं की संख्या और अनुभव
पिथौरागढ़ के ज़िला मजिस्ट्रेट विनोद गोस्वामी ने बताया कि इस वर्ष लिपुलेख दर्रे से कुल 237 श्रद्धालु कैलाश मानसरोवर यात्रा पर गए, जिनमें 171 पुरुष और 66 महिलाएँ शामिल थीं। उन्होंने कहा कि इन श्रद्धालुओं ने कुमाऊँ मंडल विकास निगम, आईटीबीपी और राज्य सरकार के अधिकारियों की मदद से अपनी यात्रा पूरी की।
पांचवें दल के संपर्क अधिकारी मनु महाराज ने कहा कि श्रद्धालुओं में उत्साह और उमंग थी। चीन में भी तीर्थयात्रियों को बेहतर सुविधाएं प्रदान की जा रही थीं, और चीनी अधिकारियों का व्यवहार भी बहुत अच्छा था। भविष्य में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ने की उम्मीद है।