काशी में देवदीपावली: 5 नवंबर को 20 लाख दीयों से सजेंगे 84 घाट
काशी में देवदीपावली का उत्सव
भगवान शिव की पवित्र नगरी काशी में देवदीपावली का जश्न शुरू हो गया है। 5 नवंबर की शाम को काशी की गलियां और घाट अलौकिक रोशनी से जगमगा उठेंगे। अर्धचंद्राकार गंगा घाट से लेकर तालाबों और कुंडों तक दीयों की सजावट एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करेगी। कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाए जाने वाले इस पर्व का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है, लेकिन इसका वर्तमान स्वरूप काशी से ही शुरू हुआ था। यहां के पचगंगा घाट पर दान में मिले दो कनस्तर तेल से इसकी शुरुआत हुई थी। काशी नरेश के सहयोग से पांच युवकों के प्रयासों ने इसे एक विश्व प्रसिद्ध पर्व बना दिया। देवदीपावली का अर्थ है 'देवताओं की दीपावली', और मान्यता है कि इस दिन देवता पृथ्वी पर आते हैं और काशी के घाटों पर दीप जलाकर उत्सव मनाते हैं।
पौराणिक मान्यता
पौराणिक दृष्टिकोण से, स्कंद पुराण और शिव पुराण के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने असुर त्रिपुरासुर का वध किया था। त्रिपुरासुर ने ब्रह्मा की कठोर तपस्या से वरदान प्राप्त किया था कि उसे केवल 'त्रिपुर संयोग' में ही मारा जा सकता है। इस असुर के अत्याचार से त्रिलोकी (स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल) परेशान हो गई थी।
शिव की विजय और उत्सव की शुरुआत
भगवान शिव ने पिनाक धनुष से बाण चलाकर त्रिपुरासुर के तीन नगरों का विनाश किया। इस विजय के उपलक्ष्य में देवताओं ने काशी में दीप जलाकर उत्सव मनाया। काशी को इस उत्सव के लिए चुना गया क्योंकि यह शिव की ज्योतिर्लिंग नगरी है और गंगा तट पर स्थित आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है। तब से यह परंपरा चली आ रही है कि कार्तिक पूर्णिमा की रात को 'देवता स्वयं दीप जलाते हैं'।
आधुनिक देवदीपावली का उदय
आधुनिक देवदीपावली का प्रारंभ चार दशक पहले हुआ और यह आज विश्वभर में प्रसिद्ध हो चुका है। 1983 तक, इस दिन का महत्व केवल स्नान-दान तक सीमित था। 1984 में, पं. विजय उपाध्याय ने दान में मिले दो कनस्तर तेल से पंचगंगा घाट पर दीप जलाए, जिससे यह परंपरा शुरू हुई।
इस बार की तैयारी
इस वर्ष देवदीपावली पर अस्सी घाट, तुलसी घाट, जैन घाट, हरिश्चंद्र घाट, केदार घाट, और अन्य घाटों पर गंगा पूजन और आरती का आयोजन होगा। सभी घाटों पर तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
लेजर शो का आयोजन
देवदीपावली पर चेतसिंह किले की प्राचीर पर लेजर शो का आयोजन किया जाएगा, जिसमें पौराणिक कथाएं जीवंत होंगी। यह शो रात 8:15, 9:00 और 9:35 बजे होगा।
स्थान का चयन
गंगा के बढ़ते जलस्तर को ध्यान में रखते हुए रंगोली और दीपों के लिए स्थान का चयन एक चुनौती बन गया है।
महान विभूतियों की स्मृति
अस्सी स्थित पुष्कर तालाब पर काशी की महान विभूतियों की स्मृति में दीप जलाए जाएंगे।