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कंस वध मेला 2025: मथुरा की अद्भुत परंपरा और उत्सव

कंस वध मेला 2025, मथुरा में मनाया जाने वाला एक अद्भुत धार्मिक उत्सव है। यह मेला हर साल कार्तिक शुक्ल दशमी को आयोजित होता है, जिसमें चतुर्वेदी समाज कंस के वध की घटनाओं का प्रतीकात्मक प्रदर्शन करता है। इस मेले में विजय जुलूस, लाठियों से युद्ध और भव्य दीपदान जैसी अनूठी परंपराएं शामिल होती हैं। जानें इस मेले की तिथि और इसकी विशेष रस्मों के बारे में।
 

कंस वध मेला 2025 कब होगा?

मथुरा, जिसे भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि माना जाता है, में हर त्योहार का एक विशेष अंदाज होता है। यहां का 'कंस वध का मेला' केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह एक प्राचीन परंपरा का जीवंत उदाहरण है। इसे चतुर्वेदी समाज द्वारा बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।


कंस वध का मेला कब मनाया जाता है?

यह मेला हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को आयोजित किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने अपने मामा कंस का वध कर धर्म की स्थापना की थी।


कंस वध मेला 2025 की तिथि

द्रिक पंचांग के अनुसार, 2025 में कार्तिक शुक्ल दशमी तिथि 31 अक्टूबर को सुबह 10:03 बजे से शुरू होगी और 1 नवंबर को सुबह 9:11 बजे समाप्त होगी। इस प्रकार, कंस वध मेला 1 नवंबर 2025 (शनिवार) को मनाया जाएगा।


चतुर्वेदी समाज की अनूठी रस्में

यह मेला पूरी तरह से चतुर्वेदी समाज द्वारा आयोजित किया जाता है, जो कंस वध की घटनाओं को प्रतीकात्मक रूप से पुनः प्रस्तुत करते हैं।


लाठियों से युद्ध का आरंभ

इस दिन कंस के विशाल पुतले का निर्माण किया जाता है। चतुर्वेदी समाज के लोग लाठियों से कंस के पुतले पर वार करते हैं, जो भगवान कृष्ण और बलराम द्वारा कंस से युद्ध की शुरुआत का प्रतीक है।


विजय जुलूस और सिर टांगने की परंपरा

कंस का प्रतीकात्मक वध होने के बाद, चतुर्वेदी समाज एक भव्य विजय जुलूस निकालता है। इस जुलूस में कंस के पुतले को जमीन पर घसीटते हुए विश्राम घाट तक ले जाया जाता है। विजय का प्रतीक यह है कि समाज के लोग कंस के पुतले का सिर काटकर उसे अपनी लाठियों में टांगते हैं।


मेले का उत्साह और झांकियां

कंस वध की इस ऐतिहासिक जीत का जश्न केवल मथुरा तक सीमित नहीं है। विभिन्न जिलों से आकर्षक झांकियां इस मेले में शामिल होती हैं, जिनमें देवी-देवताओं की लीलाओं का मनमोहक प्रदर्शन होता है।


हत्या के दोष से मुक्ति के लिए परिक्रमा

कंस वध धर्म की स्थापना के लिए किया गया था, लेकिन चतुर्वेदी समाज अपने मामा की हत्या के प्रतीकात्मक दोष से मुक्ति पाने के लिए विशेष अनुष्ठान करता है। वे मथुरा, गरूड़ गोविन्द और वृन्दावन की परिक्रमा करते हैं।


विश्राम घाट पर समापन

मेले का समापन शाम को विश्राम घाट पर एक भव्य दीपदान के साथ होता है। यमुना के तट पर हजारों दीप जलाए जाते हैं, जिससे घाट जगमगा उठता है।