उत्पन्ना एकादशी 2025: व्रत के दौरान इन 5 गलतियों से बचें
उत्पन्ना एकादशी 2025
उत्पन्ना एकादशी 2025
उत्पन्ना एकादशी व्रत के नियम: पौराणिक कथाओं के अनुसार, उत्पन्ना एकादशी का दिन देवी एकादशी के प्रकट होने का दिन है, जब भगवान विष्णु ने असुर मुर का वध किया था। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को अपार पुण्य की प्राप्ति होती है और पापों का नाश होता है। यह एकादशी विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो मोक्ष और सुख-समृद्धि की कामना रखते हैं। आइए जानते हैं इस दिन किन कार्यों से बचना चाहिए।
उत्पन्ना एकादशी 2025 कब है?
पंचांग के अनुसार, एकादशी तिथि 15 नवंबर, शनिवार को सुबह 12:49 बजे से शुरू होगी और 16 नवंबर, रविवार को सुबह 02:37 बजे समाप्त होगी। चूंकि एकादशी तिथि सूर्योदय के समय शुरू हो रही है, इसलिए इस बार व्रत 15 नवंबर को रखा जाएगा।
उत्पन्ना एकादशी के व्रत में भूलकर भी न करें ये 5 गलतियां!
चावल का सेवन
एकादशी के दिन चावल का सेवन करना सबसे बड़ी गलती मानी जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन चावल खाना पाप है। इसके बजाय फल, दूध, या व्रत में खाए जाने वाले सात्विक आहार जैसे कुट्टू, सिंघाड़ा, और साबूदाना का सेवन करना चाहिए।
तामसिक भोजन का सेवन
व्रत के एक दिन पहले से लेकर द्वादशी तक, घर में लहसुन, प्याज, मांसाहार और शराब का सेवन वर्जित है। ये चीजें व्रत की पवित्रता को भंग करती हैं।
ब्रह्मचर्य का पालन न करना और क्रोध करना
एकादशी के दिन शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्ध रहना आवश्यक है। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है और किसी के साथ झगड़ा या क्रोध करने से बचना चाहिए।
बाल और नाखून काटना
उत्पन्ना एकादशी के दिन बाल कटवाना और नाखून काटना अशुभ माना जाता है। इस दिन केवल स्नान पर ध्यान दें और सात्विक दिनचर्या अपनाएं।
पारण सही समय पर न करना
व्रत का पारण सही समय पर करना भी महत्वपूर्ण है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि में ही किया जाता है, इसलिए पंचांग देखकर शुभ मुहूर्त जानकर ही व्रत खोलें।
उत्पन्ना एकादशी का महत्व
सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। हर साल मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है।