×

अहोई अष्टमी 2025: पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और सामग्री की जानकारी

अहोई अष्टमी 2025 का व्रत 13 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए अहोई माता की पूजा करती हैं। जानें इस व्रत का शुभ मुहूर्त, आवश्यक सामग्री और पूजा विधि। इस पर्व का महत्व और इसे मनाने की सही विधि के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
 

अहोई अष्टमी व्रत


अहोई अष्टमी व्रत




Ahoi Vrat 2025: हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत मनाया जाता है, जो इस बार सोमवार, 13 अक्टूबर को है। इसे अहोई आठे के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए व्रत रखकर अहोई माता की पूजा करती हैं। यह पर्व मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। यदि आप भी इस व्रत को करने जा रही हैं, तो आइए जानते हैं कि अहोई माता की पूजा कैसे की जाती है और इसका शुभ समय क्या है।


अहोई अष्टमी 2025 शुभ मुहूर्त



  1. अष्टमी तिथि प्रारंभ – 13 अक्टूबर रात 12:24 बजे।

  2. अष्टमी तिथि समाप्त – 14 अक्टूबर सुबह 11:09 बजे।

  3. अहोई अष्टमी व्रत – सोमवार, 13 अक्टूबर 2025।

  4. अहोई अष्टमी पूजा का समय – 13 अक्टूबर शाम 5:53 से 7:08 बजे तक।

  5. तारों का निकलने का समय – 13 अक्टूबर शाम 06:17 बजे।

  6. अहोई अष्टमी चंद्रोदय का समय – 13 अक्टूबर रात 11:18 बजे।


अहोई अष्टमी का व्रत क्यों रखा जाता है?


कार्तिक मास में करवा चौथ के चार दिन बाद, कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को संतान की उम्र और जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति के लिए अहोई माता का व्रत किया जाता है।


अहोई अष्टमी की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री


इस पूजा के लिए अहोई माता की तस्वीर, श्रृंगार का सामान, जल का कलश, करवा, दीपक, गाय का घी, धूप-बत्ती, रोली, कलावा, अक्षत (चावल), सूखा आटा (चौक बनाने के लिए), दूध, फूल, फल (जैसे सिंघाड़ा) और मिठाई का भोग शामिल होता है। इसके अलावा, अहोई माता की व्रत कथा की पुस्तक भी आवश्यक होती है।


अहोई अष्टमी की पूजा विधि



  • अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।

  • दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं या माता का चित्र स्थापित करें।

  • एक मिट्टी या तांबे के कलश में जल भरकर पूजा स्थल पर रखें।

  • कलश के पास एक दीपक जलाएं, जो पूजा के दौरान जलता रहे।

  • संतान की लंबी उम्र की कामना करते हुए निर्जला व्रत का संकल्प लें।

  • अहोई माता को रोली, कुमकुम, चावल, हल्दी, फूल-माला, धूप-दीप से सजाएं।

  • फिर अहोई माता को फल, मिठाई और पूरी का भोग लगाएं।

  • इसके बाद अहोई माता की कथा सुनें या पढ़ें।

  • पूजा के अंत में अहोई माता की आरती करें।

  • शाम को तारों को देखकर हाथ में गेहूं या चावल के कुछ दाने लेकर उन्हें अर्घ्य दें और जल अर्पित करें।

  • इसके बाद ही अपना व्रत खोलें और फल-मिठाई ग्रहण करें।


अहोई अष्टमी के दिन किन कामों से बचना चाहिए?



  • इस दिन महिलाओं को मिट्टी की खुदाई नहीं करनी चाहिए।

  • सात्विक भोजन का सेवन करें और तामसिक भोजन से दूर रहें।

  • पूजा में तांबे या पीतल का लोटा ही उपयोग करें, स्टील का लोटा न लें।

  • चाकू या कैंची का उपयोग न करें।


अहोई अष्टमी का व्रत कैसे खोला जाता है?


अहोई अष्टमी का व्रत तारों के उदय होने पर तारों का दर्शन करके खोला जाता है। संध्या काल में माताएं अहोई माता की पूजा कर तारों का दर्शन करके उन्हें जल का अर्घ्य देती हैं। इसके बाद ही व्रत पूरा माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तारों को करवे से अर्घ्य दिया जाता है।