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हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: पत्नी को भरण-पोषण न मिलने पर मिलेगा तलाक का अधिकार

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मुस्लिम विवाह कानून से जुड़े एक मामले में महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। अदालत ने कहा है कि यदि पति पत्नी का भरण-पोषण नहीं करता है, तो पत्नी को तलाक का अधिकार होगा, चाहे वह मायके में क्यों न रह रही हो। यह मामला कोरिया जिले का है, जहां पत्नी ने पति पर भरण-पोषण न देने और संपत्ति हड़पने का आरोप लगाया था। जानें इस फैसले के पीछे की पूरी कहानी और इसके कानूनी पहलू।
 

बिलासपुर में हाईकोर्ट का निर्णय

बिलासपुर


छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मुस्लिम विवाह कानून से संबंधित एक महत्वपूर्ण मामले में निर्णय सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि यदि पति लगातार दो वर्षों तक पत्नी का भरण-पोषण नहीं करता है, तो पत्नी को तलाक लेने का अधिकार होगा, भले ही वह अपने मायके में रह रही हो। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने फैमिली कोर्ट के तलाक के आदेश को आंशिक रूप से सही ठहराया है।


यह मामला कोरिया जिले के मनेंद्रगढ़ से संबंधित है, जहां 30 सितंबर 2015 को मुस्लिम रीति-रिवाज से विवाह हुआ था। विवाह के बाद पत्नी केवल 15 दिन ससुराल में रही और पारिवारिक विवाद के कारण मई 2016 से मायके में रहने लगी। पत्नी ने आरोप लगाया कि पति ने उसके नाम की 10 लाख रुपए की एफडी तुड़वाने का दबाव बनाया, जिसके चलते उसने घरेलू हिंसा, 498-ए और भरण-पोषण से जुड़े मामले दर्ज कराए। फैमिली कोर्ट ने इन तथ्यों के आधार पर विवाह विच्छेद का आदेश दिया था।


सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम, 1939 की धारा 2(ii) में यह शर्त नहीं है कि पत्नी पति के साथ रह रही हो। कोर्ट ने रिकॉर्ड के आधार पर माना कि 2016 से लगभग आठ वर्षों तक पत्नी को कोई भरण-पोषण नहीं मिला, जो तलाक के लिए पर्याप्त आधार है।


हालांकि, कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस निष्कर्ष को पलट दिया जिसमें पति पर पत्नी की संपत्ति हड़पने या उसके कानूनी अधिकारों में बाधा डालने का आरोप स्वीकार किया गया था। हाईकोर्ट ने कहा कि केवल एफडी तुड़वाने की मांग का आरोप पर्याप्त नहीं है, जब तक यह साबित न हो कि वास्तव में पत्नी की संपत्ति का दुरुपयोग किया गया। अंत में, हाईकोर्ट ने भरण-पोषण न देने के आधार पर तलाक के आदेश को बरकरार रखते हुए यह संदेश दिया कि मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण के अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती।