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हनुमान चालीसा की रचना का रहस्य: तुलसीदास और हनुमानजी की अद्भुत कथा

हनुमान चालीसा, जो 40 छंदों का एक अद्भुत स्तोत्र है, की रचना के पीछे एक रहस्यमय कथा है। गोस्वामी तुलसीदास जब इसे लिख रहे थे, तो उनके लिखे शब्द रातोंरात मिट जाते थे। हनुमानजी के प्रकट होने पर हुई बातचीत ने इस स्थिति को बदल दिया। जानें कैसे हनुमानजी ने तुलसीदास को समझाया और हनुमान चालीसा का लेखन सफल हुआ। यह कथा भक्ति और समर्पण का अद्भुत उदाहरण है।
 

हनुमान चालीसा: एक अद्भुत स्तोत्र

हनुमान चालीसा, जिसमें 40 छंद हैं, एक विशेष स्तोत्र है जिसे पढ़ने से भक्तों को अपार लाभ होता है। भक्त इसे नियमित रूप से श्रद्धा और भक्ति के साथ पाठ करते हैं। लेकिन इसके रचना काल से जुड़ी एक अनोखी घटना है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। यह घटना गोस्वामी तुलसीदास और भगवान हनुमान से जुड़ी हुई है।


कथा के अनुसार, जब तुलसीदास हनुमान चालीसा लिख रहे थे, तो वे हर रात अपने लिखे हुए पन्नों को सुरक्षित रखते थे। लेकिन हर सुबह उन्हें यह देखकर आश्चर्य होता था कि रात में लिखा गया सब कुछ रहस्यमय तरीके से मिट गया है। यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा। जब यह चमत्कारिक घटना बार-बार होने लगी, तो तुलसीदास ने हनुमानजी का आवाहन किया।


जब हनुमानजी तुलसीदास के सामने प्रकट हुए, तो तुलसीदास ने विनम्रता से पूछा, "मैं जो हनुमान चालीसा लिखता हूँ, वह रातोंरात क्यों मिट जाता है?" हनुमानजी ने उत्तर दिया, "यदि प्रशंसा करनी है, तो मेरे प्रभु श्रीराम की करो, मेरी नहीं।" इस उत्तर से तुलसीदास चकित रह गए।


तुलसीदास ने हनुमानजी को समझाते हुए अपने पहले दोहे का पाठ किया। उन्होंने कहा, "श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि। बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।" हनुमानजी ने तुरंत कहा, "मैं रघुवर नहीं हूँ।"


तुलसीदास ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया कि हनुमानजी और श्रीराम एक ही प्रसाद के प्रभाव से धरती पर आए हैं। उन्होंने ब्रह्मा लोक की एक अप्सरा सुवर्चला की कथा का उल्लेख किया, जिसे गिद्ध होने का श्राप मिला था। वही गिद्ध राजा दशरथ के यज्ञ का प्रसाद लेकर उड़ गई, और प्रसाद का एक भाग माता अंजना के पास गिरा। इसी के प्रभाव से श्रीराम और हनुमान का जन्म हुआ।


तुलसीदास ने कहा, "जैसे प्रभु राम ने आपको भाई कहा है, उसी आधार पर मैंने 'रघुवर' शब्द का प्रयोग किया है।" उन्होंने यह प्रसिद्ध पंक्ति भी उद्धृत की, "तुम मम प्रियहि सम भाई।"


इसके बाद तुलसीदास ने वह क्षण भी याद किया जब हनुमानजी माता सीता से मिले थे। माता ने उनके गुण देखकर उन्हें पुत्र कहा था, "अजर अमर गुणनिधि सुत होहु।" तुलसीदास ने समझाया, "जिसे माता जानकी ने पुत्र कहा और जिसे प्रभु राम ने भाई कहा, वह 'रघुवर' क्यों नहीं?"


हनुमानजी की विनम्रता और तुलसीदास की व्याख्या सुनकर हनुमानजी को आत्मज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद उनके लिखे हुए छंद कभी नहीं मिटे। कहा जाता है कि इसी घटना के बाद हनुमान चालीसा का पवित्र लेखन सफलतापूर्वक पूरा हुआ और यह महान स्तोत्र भक्तों के लिए एक अमूल्य धरोहर बन गया। हनुमान चालीसा केवल एक स्तुति नहीं, बल्कि भक्ति, समर्पण और गुरु-भक्ति का अद्भुत प्रतीक है।