स्विगी-जोमैटो डिलीवरी वर्कर्स की 31 दिसंबर को हड़ताल की घोषणा
डिलीवरी वर्कर्स की नाराजगी
सांकेतिक तस्वीर
स्विगी, जोमैटो, ब्लिंकिट, जैप्टो, अमेज़ॉन और फ्लिपकार्ट जैसे डिजिटल प्लेटफार्मों पर काम करने वाले गिग वर्कर्स ने 31 दिसंबर को एक बार फिर से राष्ट्रव्यापी हड़ताल का ऐलान किया है। इन वर्कर्स ने मीडिया से बातचीत में बताया कि लंबे समय तक काम करने के बावजूद उन्हें उचित मेहनताना नहीं मिलता और न ही काम करने का सुरक्षित माहौल उपलब्ध है।
इनका आरोप है कि कंपनियां मनमाने तरीके से डिलीवरी पेमेंट, इंसेंटिव और बोनस में कटौती कर रही हैं। पहले कम दूरी की डिलीवरी के लिए भी पर्याप्त भुगतान मिलता था, लेकिन अब दूरी बढ़ने के साथ-साथ भुगतान में कमी आ रही है।
कमाई की स्थिति
स्थिति यह है कि कई बार 7 से 8 घंटे काम करने के बाद भी उन्हें केवल 400 से 500 रुपये मिलते हैं। घर चलाने के लिए मजबूर होकर 17 से 18 घंटे काम करना पड़ता है। इसके अलावा, जल्दी डिलीवरी करने का दबाव भी रहता है। अगर रास्ते में जाम आ जाए तो ग्राहक नाराज होते हैं, और यदि किसी दुर्घटना का सामना करना पड़े तो न तो इलाज की सुविधा मिलती है और न ही बीमा।
हाल ही में 25 दिसंबर को भी इन वर्कर्स ने हड़ताल की थी, लेकिन इससे समस्या का समाधान नहीं हुआ। उन्होंने बताया कि अपनी आवाज उठाने पर टीम लीडर ने उन्हें धमकी दी कि उनकी आईडी ब्लॉक कर दी जाएगी। पहले जहां 5 घंटों में औसतन 15 ऑर्डर मिलते थे, अब यह घटकर 7-8 रह गए हैं। इंसेंटिव भी निश्चित नहीं हैं।
आर्थिक संकट
इन वर्कर्स का कहना है कि हाल के महीनों में पेमेंट स्ट्रक्चर में बदलाव के कारण उनकी आमदनी में 50% की गिरावट आई है। बढ़ती लागत और अनिश्चित कार्य घंटे उन्हें असुरक्षित स्थिति में डाल रहे हैं।
गिग वर्कर्स की हड़ताल का असर डिलीवरी नेटवर्क पर भी पड़ रहा है। पिछले हड़ताल के कारण कई क्षेत्रों, विशेषकर गुरुग्राम में, फूड और ग्रोसरी डिलीवरी सेवाओं में बाधा आई है। एक फूड आउटलेट के मालिक ने बताया कि उनकी बिक्री में 80% की कमी आई है।
गिग वर्कर्स की मांग है कि उन्हें डिलीवरी के लिए उचित भुगतान, इंसेंटिव, बीमा पॉलिसी और स्वास्थ्य लाभ दिए जाएं। लेकिन असंगठित क्षेत्र और एकजुटता की कमी के कारण उनकी आवाज को अनसुना किया जा रहा है। कुछ ऐप कंपनियों का कहना है कि नए पेमेंट मॉडल प्रदर्शन आधारित हैं और उनका उद्देश्य प्रभावी डिलीवरी नेटवर्क बनाना है।
भारत में लगभग 80 लाख गिग वर्कर्स हैं, जो डिलीवरी, लॉजिस्टिक्स और राइड-शेयरिंग सेक्टर में कार्यरत हैं। हालांकि, यह रोजगार मॉडल लचीला है, लेकिन इसमें सामाजिक सुरक्षा और न्यूनतम वेतन के लिए कानूनी ढांचा अभी भी स्पष्ट नहीं है।