सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने अमित शाह की टिप्पणी को बताया दुर्भाग्यपूर्ण
न्यायाधीशों का बयान
सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के एक समूह ने सलवा जुडूम मामले पर गृह मंत्री अमित शाह की टिप्पणी को ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण’’ बताया है। विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी पर शाह की टिप्पणी को लेकर यह प्रतिक्रिया आई है।
इस समूह में उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर सहित 18 सेवानिवृत्त न्यायाधीश शामिल हैं। उन्होंने कहा कि एक उच्च राजनीतिक पदाधिकारी द्वारा शीर्ष अदालत के निर्णय की ‘‘पूर्वाग्रहपूर्ण गलत व्याख्या’’ से न्यायाधीशों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
गृह मंत्री अमित शाह ने पूर्व न्यायाधीश रेड्डी पर नक्सलवाद का ‘‘समर्थन’’ करने का आरोप लगाया था। उनका कहना था कि अगर सलवा जुडूम पर निर्णय नहीं लिया गया होता, तो वामपंथी उग्रवाद 2020 तक समाप्त हो गया होता।
इन न्यायाधीशों ने एक बयान में कहा, ‘‘सलवा जुडूम मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय की सार्वजनिक रूप से गलत व्याख्या करना केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बयान दुर्भाग्यपूर्ण है। यह निर्णय न तो स्पष्ट रूप से और न ही लिखित निहितार्थों के माध्यम से नक्सलवाद या उसकी विचारधारा का समर्थन करता है।’’
बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ए के पटनायक, न्यायमूर्ति अभय ओका, न्यायमूर्ति गोपाल गौड़ा, न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर शामिल हैं।
उन्होंने आगे कहा कि किसी उच्च राजनीतिक पदाधिकारी द्वारा उच्चतम न्यायालय के किसी निर्णय की पूर्वाग्रहपूर्ण गलत व्याख्या से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को नुकसान पहुंच सकता है।
भाजपा नेता शाह ने शुक्रवार को केरल में कहा था, ‘‘सुदर्शन रेड्डी वही व्यक्ति हैं जिन्होंने नक्सलवाद की मदद की। उन्होंने सलवा जुडूम पर फैसला सुनाया। अगर सलवा जुडूम पर फैसला नहीं सुनाया गया होता, तो नक्सली चरमपंथ 2020 तक खत्म हो गया होता।’’
रेड्डी ने शनिवार को कहा कि वह गृह मंत्री के साथ इस मुद्दे पर बहस नहीं करना चाहते। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह निर्णय उनका नहीं, बल्कि उच्चतम न्यायालय का है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि शाह ने पूरा निर्णय पढ़ा होता, तो वह ऐसी टिप्पणी नहीं करते।