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सुशासन की परिभाषा और भारतीय परिप्रेक्ष्य में इसकी आवश्यकता

इस लेख में सुशासन की परिभाषा, इसके ऐतिहासिक संदर्भ और वर्तमान में भारत में इसकी चुनौतियों पर चर्चा की गई है। लेखक ने भारतीय परंपरा और नैतिकता के आधार पर शासन की आवश्यकता को रेखांकित किया है। जानें कि कैसे भारतीय विचारधारा सुशासन को प्रभावित करती है और आज के राजनीतिक परिदृश्य में सुधार की आवश्यकता है।
 

सुशासन की अवधारणा


सुशासन की व्याख्या विभिन्न विचारकों द्वारा अलग-अलग समय पर की गई है। यद्यपि इसकी कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है, यह स्पष्ट है कि सुशासन का मुख्य उद्देश्य राज्य का सुव्यवस्थित संचालन और नागरिकों की भलाई है।


राज्यों के विकास की यात्रा में कई संस्थाओं का उदय हुआ है। चाहे वह जनजातीय हो, प्राचीन या सामंतवादी, सभी ने अपने-अपने समय में सुशासन की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने सुशासन के मानकों में भागीदारी, कानून का शासन, और पारदर्शिता जैसे गुणों को शामिल किया है। इसके बाद 'Good Governance' शब्द प्रशासनिक विमर्श में प्रचलित हुआ।


इतिहास में प्रशासनिक सुधार

अंग्रेजी शासन के दौरान भी प्रशासनिक सुधारों के नाम पर कई आयोगों का गठन किया गया। स्वतंत्रता के बाद भी कई समितियों ने कानूनों की समीक्षा और कार्यविधियों के सरलीकरण के लिए प्रयास किए।


हालांकि, हम यह भूल गए कि भारत का एक गौरवशाली इतिहास है और यहां उत्कृष्ट शासन प्रणालियों के कई उदाहरण हैं। दुर्भाग्यवश, विदेशी विचारों को अपनाने के कारण हमारी अपनी परंपराओं को नजरअंदाज किया गया। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने भारतीय राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय जीवन मूल्यों की व्याख्या की।


भारतीय परंपरा और शासन

भारतीय परंपरा का मूल राजनैतिक दर्शन यह बताता है कि शासन केवल शक्ति का प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक नैतिक दायित्व है। महाभारत और उपनिषदों में न्याय और प्रजा के कल्याण की बातें की गई हैं।


आज की सुशासन की परिकल्पना Good Governance index 2019 से जुड़ी हुई है, जिसमें प्रशासनिक जवाबदेही के मानकों का आकलन किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 'सबका साथ सबका विकास' के सिद्धांत के साथ भारत को विकसित करने का लक्ष्य रखा है।


चुनौतियाँ और समाधान

हालांकि, आज भ्रष्टाचार, लालफीताशाही और प्रशासनिक अक्षमता जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जनप्रतिनिधियों की छवि को सुधारने की आवश्यकता है, ताकि वे जनता की समस्याओं को सही तरीके से उठाएं।


एकात्म मानवदर्शन की दृष्टि से, यदि हम सर्वसम्मति से कार्य करें, तो प्रशासन और राजनीति की दिशा में सुधार संभव है।


लेखक की पहचान

लेखक भारतीय शासन एवं राजनीति के विशेषज्ञ हैं और राजनीति शास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं।