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सुप्रीम कोर्ट में जलवायु कार्यकर्ता की रिहाई की मांग, सोनम वांगचुक की पत्नी ने उठाई आवाज़

सोनम वांगचुक की पत्नी, गीतांजलि जे अंगमो, ने सुप्रीम कोर्ट में जलवायु कार्यकर्ता की रिहाई की मांग की है, जो लद्दाख में हालिया हिंसा के बाद से जोधपुर जेल में बंद हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि उनके पति को झूठे आरोपों में फंसाया गया है और उनकी गिरफ्तारी अवैध है। गीतांजलि ने राष्ट्रपति से भी हस्तक्षेप की अपील की है। जानें इस मामले में और क्या हो रहा है।
 

जलवायु कार्यकर्ता की रिहाई के लिए याचिका

सोनम वांगचुक की पत्नी, गीतांजलि जे अंगमो, ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है जिसमें उन्होंने जलवायु कार्यकर्ता की रिहाई की मांग की है। यह कार्यकर्ता 24 सितंबर को लद्दाख में हुई हिंसक झड़पों के बाद से जोधपुर जेल में बंद है। गीतांजलि ने अदालत में कहा कि उनके पति की गिरफ्तारी अवैध है और उन्हें तुरंत रिहा किया जाना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि वांगचुक को झूठे आरोपों में फंसाया गया है, जिसमें पाकिस्तान से संबंध रखने का आरोप भी शामिल है, जो पूरी तरह से गलत है।


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गीतांजलि ने वांगचुक पर लगाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के आरोपों पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्हें अभी तक हिरासत का आदेश नहीं मिला है, जो कानून का उल्लंघन है। उन्होंने यह भी बताया कि वह अपने पति से संपर्क नहीं कर पा रही हैं। बुधवार को, उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की और वांगचुक की रिहाई के लिए हस्तक्षेप करने की अपील की। राष्ट्रपति को लिखे पत्र में, उन्होंने अपने पति के खिलाफ पिछले चार वर्षों से जनहित के मुद्दों पर काम करने के लिए "जासूसी" का आरोप लगाया।


आंग्मो ने उपायुक्त के माध्यम से भेजे गए ज्ञापन में कहा कि वे वांगचुक की बिना शर्त रिहाई की मांग करते हैं, जो किसी के लिए भी खतरा नहीं बन सकते। उन्होंने कहा कि वांगचुक ने लद्दाख की धरती के वीर सपूतों की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है और भारतीय सेना के साथ मिलकर हमारे महान राष्ट्र की रक्षा में खड़े हैं।


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वांगचुक को 26 सितंबर को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में लिया गया था। यह हिंसा लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और इस क्षेत्र को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग के समर्थन में हुए प्रदर्शनों के दौरान भड़की थी, जिसमें चार लोगों की मौत और कई अन्य घायल हुए थे। जब उनसे पूछा गया कि क्या लद्दाख जैसे पारिस्थितिक रूप से नाज़ुक क्षेत्र में अनियंत्रित विकास गतिविधियों के खिलाफ लड़ना गलत है, तो उन्होंने कहा, "इस देश ने हाल ही में उत्तराखंड, हिमाचल और पूर्वोत्तर के अनुभवों से सबक सीखा है। आप, एक आदिवासी समुदाय से होने के नाते, लद्दाख के लोगों की भावनाओं को किसी और से बेहतर समझ सकते हैं।