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सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के रवैये पर मुख्य न्यायाधीश की नाराजगी

सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण सुनवाई के दौरान, मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने केंद्र सरकार के रवैये पर नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने अटर्नी जनरल से सवाल किया कि क्या मामले को उनके रिटायरमेंट तक टालने की बात नहीं की जा सकती। सुनवाई में केंद्र के विधि अधिकारी ने ट्राइबनल रिफॉर्म्स एक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को स्थगित करने का अनुरोध किया, जिसे प्रधान न्यायाधीश ने अनुचित बताया। जानें इस विवाद के पीछे की पूरी कहानी और अदालत की प्रतिक्रिया।
 

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का विवाद

सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण सुनवाई के दौरान, मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने केंद्र सरकार के रवैये पर अपनी नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने अटर्नी जनरल आर वेंकट रमण से पूछा कि क्या वह स्पष्ट रूप से नहीं कह सकते कि इस मामले को उनके रिटायरमेंट तक टाल दिया जाए। दरअसल, केंद्र के शीर्ष विधि अधिकारी ने ट्राइबनल रिफॉर्म्स एक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई को फिर से टालने का अनुरोध किया था। इससे पहले उन्हें दो बार सुनवाई में छूट दी जा चुकी थी ताकि वह अंतरराष्ट्रीय मामलों में भाग ले सकें।


अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने मामले का उल्लेख करते हुए अटॉर्नी जनरल की अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता प्रतिबद्धताओं का हवाला दिया और सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह अदालत के प्रति अनुचित है। एएसजी ने दलील दी कि अटॉर्नी जनरल की शुक्रवार को एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता सुनवाई निर्धारित है, इसलिए उन्होंने इसमें छूट मांगी है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि हमने उन्हें पहले ही पर्याप्त समय दिया है।


प्रधान न्यायाधीश ने भाटी से कहा कि यदि आप 24 नवंबर के बाद सुनवाई चाहते हैं, तो हमें स्पष्ट रूप से बताएं। जब भाटी ने सोमवार को सुनवाई करने का सुझाव दिया, तो प्रधान न्यायाधीश ने नाराजगी जताते हुए कहा कि फिर हम फैसला कब लिखेंगे? हर दिन हमें बताया जाता है कि वह मध्यस्थता में व्यस्त हैं। अंततः पीठ ने याचिकाकर्ता मद्रास बार एसोसिएशन के वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार को शुक्रवार को सुनने और सोमवार को अटॉर्नी जनरल की दलीलों पर सुनवाई के लिए सहमति दी।


याचिकाकर्ताओं ने ट्रिब्यनल रिफॉर्म्स एक्ट के उन प्रावधानों को चुनौती दी है, जिनमें सभी ट्रिब्यूनल चेयर पर्सन और सदस्यों का कार्यकाल 4 साल निर्धारित किया गया है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि कार्यकाल कम से कम 5 साल होना चाहिए। इससे पहले, 3 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की इस मांग को ठुकरा दिया था कि इस मामले को पांच जजों की बड़ी पीठ को भेजा जाए। जस्टिस गवाई की बेंच ने टिप्पणी की थी कि हमें उम्मीद नहीं थी कि केंद्र सरकार ऐसी चाल चलेगी।