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सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति की सलाह मांगने के अधिकार पर स्पष्टता दी

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के न्यायालय से सलाह मांगने के अधिकार पर महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह प्रक्रिया एडवाइजरी ज्यूरीडिक्शन के अंतर्गत आती है। केंद्र सरकार ने इस पर आपत्ति जताई थी, लेकिन कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति का न्यायालय से राय मांगना उचित है। इस संदर्भ में कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए गए हैं, जैसे कि क्या राष्ट्रपति के निर्णय को चुनौती दी जा सकती है और क्या गवर्नर केवल डाकिया हैं। इस निर्णय का व्यापक प्रभाव हो सकता है।
 

सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

19 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति को न्यायालय से सलाह मांगने का अधिकार है, और यह प्रक्रिया एडवाइजरी ज्यूरीडिक्शन के अंतर्गत आती है, न कि अपीलेट ज्यूरीडिक्शन के तहत। यह टिप्पणी तब की गई जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कोर्ट से राय मांगी थी, जो राज्यपालों और राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर हस्ताक्षर करने की समयसीमा से संबंधित थी। इस समय सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति और राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर अनिश्चितकाल तक देरी करने के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई चल रही थी। मई में राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से यह जानने के लिए संपर्क किया था कि क्या राज्यपाल या राष्ट्रपति किसी विधेयक पर निर्णय लेने में अनिश्चितकाल तक देरी कर सकते हैं या इसके लिए कोई समयसीमा निर्धारित की जा सकती है।


केंद्र सरकार की आपत्ति

केंद्र सरकार ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को यह निर्देश नहीं दे सकता कि वह कब और किन मुद्दों पर राय ले। यह आपत्ति 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर आधारित थी, जिसमें कहा गया था कि राज्यपाल किसी विधेयक को अनिश्चितकाल तक अपने पास नहीं रख सकते। उन्हें एक निश्चित समय सीमा के भीतर उस पर निर्णय लेना होगा।


अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की आपत्ति का जवाब देते हुए कहा कि अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति का न्यायालय से राय मांगना उचित है। राष्ट्रपति ने 15 मई को अनुच्छेद 200 और 201 के संदर्भ में 14 सवाल पूछे थे, जिनमें कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल थे।


क्या कोर्ट राष्ट्रपति-राज्यपाल के लिए समय सीमा निर्धारित कर सकता है?


क्या राष्ट्रपति के निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है?


क्या राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट से राय लेना अनिवार्य है?


क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल के निर्णयों पर कानून लागू होने से पहले अदालत सुनवाई कर सकती है?


क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 का उपयोग कर राष्ट्रपति या राज्यपाल के निर्णय को बदल सकता है?


क्या राज्य विधानसभा में पारित कानून, अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की स्वीकृति के बिना लागू किया जा सकता है?


क्या केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद केवल सुप्रीम कोर्ट ही सुलझा सकता है?


गवर्नर की भूमिका

सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि राज्यपाल केवल 'डाकिया' नहीं हैं, जो हर विधेयक पर बिना सोचे-समझे मुहर लगाते हैं। वे राष्ट्रपति और संघ का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने उदाहरण दिया कि यदि कोई विधानसभा अत्यंत विवादास्पद कानून पारित करती है, तो गवर्नर ऐसे विधेयकों पर स्वीकृति रोक सकते हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह शक्ति केवल विशेष परिस्थितियों में ही उपयोग की जानी चाहिए।