सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण को मान्यता दी
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को मान्यता दी है, जिसमें मतदाताओं की संख्या वयस्क जनसंख्या से 107% तक पहुँच गई थी। सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने इस प्रक्रिया में हुई कमी और गड़बड़ियों पर सवाल उठाए हैं। चुनाव आयोग ने अपील की प्रक्रिया को स्पष्ट किया है, और अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को होगी। यह मामला न केवल बिहार के लिए, बल्कि पूरे देश में मतदाता सूची की पारदर्शिता के लिए महत्वपूर्ण है।
Oct 10, 2025, 22:51 IST
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
गुरुवार को, सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को मान्यता दी। न्यायालय ने बताया कि राज्य में मतदाताओं की संख्या वयस्क जनसंख्या के 107% तक पहुँच गई थी, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वोटर लिस्ट में डुप्लीकेशन और अन्य समस्याएँ थीं, जिन्हें सुधारना आवश्यक था।
सुनवाई का विवरण
इस मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच ने की। सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने बताया कि SIR अभियान के बाद बिहार की मतदाता सूची में लगभग 47 लाख मतदाताओं की कमी आई है। उन्होंने कहा कि सितंबर 2025 तक राज्य की वयस्क जनसंख्या 8.22 करोड़ थी, जबकि SIR शुरू होने से पहले सूची में 7.89 करोड़ नाम थे। अब अंतिम मतदाता सूची में केवल 7.42 करोड़ मतदाता शामिल हैं। यादव ने तर्क किया कि विश्व स्तर पर मतदाता सूचियों को पूर्णता, समानता और सटीकता के आधार पर परखा जाता है, और इस कमी के कारण सूची पर सवाल उठता है।
जस्टिस बागची का बयान
जस्टिस बागची ने स्पष्ट किया कि 2014 से 2022 के बीच बिहार में मतदाताओं की संख्या वयस्क जनसंख्या से अधिक रही, जो 107% तक पहुँच गई थी। उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट संकेत है कि सूची में गड़बड़ियाँ थीं, जिन्हें हटाना आवश्यक था।
योगेंद्र यादव का दृष्टिकोण
योगेंद्र यादव ने स्वीकार किया कि प्रारंभिक वर्षों में यह समस्या थी, लेकिन 2023 तक यह सुधर गई थी। उनका कहना था कि SIR अभियान अब एक ऐसा “उपाय” बन गया है जो मरीज के ठीक होने के बाद दिया गया। उन्होंने चुनाव आयोग पर आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया में तीन प्रकार के बहिष्कार शामिल हैं: सिस्टमेटिक बहिष्कार (समय पर फॉर्म न भरने वालों के नाम हटाना), संरचनात्मक बहिष्कार (आवश्यक दस्तावेज़ न होने पर आवेदन खारिज करना) और लक्षित बहिष्कार (नागरिकता जांच के नाम पर नाम हटाना)।
चुनाव आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि जिन लोगों के नाम हटाए गए हैं, वे अब भी अपील कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश में बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया कि सभी जिला स्तर की कानूनी सेवा समितियों को सक्रिय किया जाए। पैरालीगल वॉलंटियर्स और मुफ्त कानूनी सहायता देने वाले वकीलों को गांव-गांव जाकर लोगों की मदद करनी होगी और उन्हें उनके अधिकारों की जानकारी देनी होगी। इस मामले पर अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को होगी।
मुख्य याचिकाकर्ता का दावा
चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि मुख्य याचिकाकर्ता संगठन ADR ने झूठा दावा किया कि एक व्यक्ति का नाम ड्राफ्ट सूची में था और बाद में हटा दिया गया। कोर्ट ने इस पर ध्यान देते हुए कहा कि यह गलत दावा शपथपत्र में करना “झूठी गवाही” के अंतर्गत आता है। जानकारों का कहना है कि यह मामला केवल बिहार तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में मतदाता सूची की पारदर्शिता और विश्वसनीयता के लिए महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है।